ताजमहल को दुनियाभर में मोहब्बत की अनमोल निशानी के नाम से जाना जाता है। इसके सौंदर्य को देखने के लिए सैलानी दशकों से खिचे चले आ रहे हैं। ताजमहल की तामीर के बाद 373 वर्षों में यहां कुछ नहीं बदला, लेकिन कोरोना काल के एक वर्ष में उसे देखने का अंदाज बदल दिया है। यहां जागरूक सैलानी अब स्मारक की दीवारों पर हो रही पच्चीकारी, जाली वर्क आदि को छूने से बचते हैं। इतना ही नहीं वे हाथों को बार-बार सैनिटाइज भी करते हैं।
मुगल शहंशाह शाहजहां ने मुमताज की याद में ताजमहल का निर्माण 1631 से 1648 के बीच कराई थी। निर्माण के इतने वर्षों तक कुछ नहीं बदला, लेकिन कोरोना काल में बदलाव महसूस किया गया। सैलानी पहले विडो से टिकट के साथ मिले टोकन को टर्न स्टाइल गेट पर स्कैन कर स्मारक में प्रवेश पाते थे। अब अधिकांश पर्यटक आनलाइन टिकट बुक कराकर आते हैं और उसे टर्न स्टाइल गेट पर स्कैन करते हैं। इससे स्मारक टच फ्री हो गया है। गेट पर ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) कर्मी उनके हाथों को सैनिटाइज कराते हैं। स्मारक में प्रवेश के बाद पर्यटक उसकी दीवारों, रेलिग आदि को पूर्व की भांति छूने से बचते हैं। अगर अनजाने में हाथ किसी चीज से लग भी जाता है, तो तुरंत सैनिटाइज करते हैं।
अधीक्षण पुरातत्वविद डा. वसंत कुमार स्वर्णकार बताते हैं कि पर्यटक कुछ जागरूक हुए हैं। अब वे ताजमहल की पच्चीकारी व दीवारों को नहीं छूते। हालांकि इन्हें छूने पर पहले से भी प्रतिबंध था, लेकिन पर्यटक किसी न किसी तरीके से इसे छूने का प्रयास जरूर करते थे। वह बताते हैं कि पर्यटकों को ऐसा करने से रोकने के लिए रेलिंग लगाई है। दिन में तीन बार स्मारक को सैनिटाइज कराया जा रहा है। पर्यटक भी अपना सैनिटाइजर साथ लाते हैं।