दिल्ली। में जातिगत जनगणना की मांग उठने लगी है। इस बीच बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ दस दलों के नेताओं ने आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दिल्ली में मुलाकात की। यह बैठक करीब 40 मिनट से ज्यादा चली। बैठक के बाद मीडिया से मुखातिब होते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि बिहार की सभी राजनीतिक पार्टियों का जातिगत जनगणना को लेकर एक मत है। हम सभी ने प्रधानमंत्री से इसकी मांग की है। उन्होंने कहा कि सरकार के एक मंत्री का बयान आया था कि जाति के आधार पर जनगणना नहीं होगी। इसलिए हम सभी ने प्रधानमंत्री से मिलकर बात की। उन्होंने हमारी पूरी बात सुनी, उन्हें हर पहलू से अवगत कराया गया है। राजद नेता तेजस्वी यादव भी पीएम मोदी से मिलने वाले प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे। उन्होंने कहा कि जातियों को ओबीसी में शामिल करने का हक राज्य सरकारों को दे दिया गया है, लेकिन इससे कोई फायदा नहीं होगा। क्योंकि, हमारे पास कोई आंकड़े ही नहीं हैं। उन्होंने कहा कि जातिगत जनगणना राष्ट्रहित में ऐतिहासिक काम होगा। एक बार आंकड़े सामने आ जाएंगे तो सरकारें उसके हिसाब से कल्याणकारी योजनाओं को भी लागू कर पाएंगी। तेजस्वी बोले- जब देश में जानवरों, पेड़-पौधों की गणना होती है तो इंसानों की क्यों नही। उन्होंने कहा कि अगर धर्म के आधार पर जनगणना होती है तो जाति के आधार पर भी होकर रहेगी।
समाज में दूर होगा द्वेष
कांग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा ने कहा कि जाति आधारित जनगणना महत्वपूर्ण है। यह आरक्षण को पारदर्शी बनाएगी, जिससे समाज में द्वेष दूर होगा। क्रीमी लेयर और नॉन क्रीमी लेयर के लोगों का भी पता चल सकेगा। वहीं, सीपीआईएम के अजय कुमार ने कहा कि जातीय आधार पर शोषण से मुक्ति के लिए जातिगत जनगणना जरूरी है।
बिहार में दो बार पास हो चुका है प्रस्ताव
बिहार विधानसभा में दो बार जातीय जनगणना का प्रस्ताव पारित हो चुका है। देश में आखिरी जातीय जनगणना 1931 में हुई। इससे पहले 10-10 साल में जातीय जनगणना होती रही है। 2011 में भी जाति आधारित जनगणना कराई गई थी, लेकिन सरकार ने इसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए थे।