कही-सुनी (26-DEC-21): मंच के पीछे की कहानियाँ- राजनीति, प्रशासन और राजनीतिक दलों की

रवि भोई ( लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं। )


स्थानीय निकायों के नतीजों के निहितार्थ

छत्तीसगढ़ में 15 स्थानीय निकायों के चुनाव को भाजपा-कांग्रेस के लिए लिटमस टेस्ट माना जा रहा था। जामुल नगर पालिका को छोड़कर अन्य सभी में कांग्रेस अपना महापौर और अध्यक्ष काबिज कर लेगी। इसके लिए उसे निर्दलियों का समर्थन मिल जाएगा। लेकिन इस चुनाव परिणाम के कई निहितार्थ भी हैं। कांग्रेस गिने-चुने स्थानीय निकायों को छोड़कर अन्य में क्लीन स्विप नहीं कर पाई है, उसे सत्तासीन होने के लिए निर्दलियों के कंधे का सहारा लेना होगा। बड़े नेताओं को मोर्चे पर लगाने के बाद भी भाजपा का तीर निशाने पर नहीं लगा, लेकिन वह परिदृश्य से बाहर नहीं हुई है और टक्कर देने की स्थिति में है। बीरगांव में पांच और जामुल में एक पार्षद जीतवाकर जोगी कांग्रेस ने अपना अस्तिव बरकरार रखा है। इस चुनाव में कई निर्दलीय भी विजयी रहे हैं। इसका साफ़ संकेत हैं कि जनता चेहरे को महत्व देती है और आगे भी देगी। वहीँ 2023 के विधानसभा चुनाव में मुकाबला कांटे का रहने वाला है। एक तरफ़ा हवा नहीं बहने वाली है।

कांग्रेस नेता की नई रणनीति

कहते है कांग्रेस के एक आदिवासी नेता ने बस्तर इलाके में अपना संगठन खड़ा कर लिया है। जोगी राज में चर्चित इस नेता की भूपेश राज में कुछ खास पूछपरख नहीं हो रही है। ऐसे में नेताजी ने अपनी जमीन मजबूत करने के लिए दांव चला। चर्चा है कि बस्तर के नेता अब उनसे संपर्क करने लगे हैं। जोगी राज में सत्ता का आनंद ले चुके नेताजी को भूपेश राज में मंत्री या संगठन का मुखिया बनने की उम्मीद थी, लेकिन दोनों ही उनके हाथ में नहीं आया। 15 साल बाद सत्ता में आने के बाद भी झुनझुना मिलने से नेताजी की भोंहे तनी हुई हैं। लोग कह रहे हैं सत्ता में रहते सत्ता से दुखी नेताजी का असली खेल 2023 के चुनाव में ही पता चलेगा ?

बाउंसरों की सुरक्षा में नेताजी

चर्चा है राज्य के एक निगम-मंडल अध्यक्ष आजकल बाउंसर लेकर चलते हैं। कहा जा रहा है नेताजी जमीन से उठकर आसमान में उड़ने लगे हैं, शायद इसी वजह से उन्हें भय सताने लगा है और अपनी सुरक्षा के लिए बाउंसर रखना पड़ा है। निगम-मंडल अध्यक्षों को सरकार की तरफ से कोई ख़ास सुरक्षा नहीं मिलती है। नेताजी हैं तो मलाईदार निगम के अध्यक्ष, ऐसे में उनके लिए बाउंसरों का खर्च उठाना कोई बड़ी बात नहीं है। मोहन मरकाम के प्रदेश अध्यक्ष बनने के पहले तक कांग्रेस संगठन को अपने हिसाब से हांकने वाले नेताजी का ख़्वाब जनप्रतिनिधि बनने का है। खबर है कि नेताजी को लोकसभा में कांग्रेस की तरफ से प्रत्याशी बनाने की बात चली थी, पर बाजी कोई और मार ले गया, यही हाल राज्यसभा सदस्य के चुनाव के वक्त भी हुआ। राज्यसभा के लिए एक बार फिर नेताजी का नाम सुर्ख़ियों में हैं, शायद यही वजह है कि उन्हें बाउंसरों के घेरे में रहना पड रहा है।

आईएएस अफसरों के लिए खतरे की घंटी

मुंगेली की घटना को राज्य के आईएएस अफसरों के लिए खतरे की घंटी बताया जा रहा है। पिछले दिनों यहां एक जिला पंचायत सदस्य अपने सीईओ को चप्पल से पिटाई करने पर उतारू हो गई। इस घटना के बाद आईएएस और राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसर लामबंद हो गए हैं। सवाल उठता है , ऐसी नौबत आई क्यों ? क्या जनप्रतिनिधि अफसरों से दबावपूर्वक कुछ भी काम कराना चाहते हैं या फिर अफसर काम करना नहीं चाहते हैं ? 2017 बैच के आईएएस रोहित व्यास की यह दूसरी फील्ड पोस्टिंग है, उन्हें नियम-कानून के आधार पर चलने वाला अफसर कहा जा रहा है। खबर है कि कुछ जनप्रतिनिधि उन्हें मुंगेली से हटवाने की फिराक में थे और जिला पंचायत सदस्य लैला ननकू को मोहरा बना लिया । कहते हैं लैला ननकू बहुजन समाज पार्टी से जुडी हैं , पर कांग्रेस को उनका समर्थन है। मामला चाहे कुछ भी हो, यह राज्य के लिए शुभ संकेत नहीं है।

भाजपा को नए चेहरों की तलाश

कहते हैं भाजपा 2023 के विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाने के लिए प्रतिष्ठित वकील, डाक्टर, पत्रकार और अन्य प्रोफेशनल्स की तलाश कर रही है। कहा जा रहा है कि भाजपा 2023 में जीत के लिए पुराने चेहरों की जगह नए चेहरों को उतारने की रणनीति पर काम कर रही है। खबर है कि पिछले विधानसभा में चुनाव हारने वालों का इस बार पत्ता तो साफ़ होगा भी, जीतने वालों की भी जमीन देखी जाएगी। भाजपा में नए फार्मूले की हवा से पार्टी के दिग्गज और स्थापित नेताओं में खलबली मची हुई है। कुछ तो अभी से हाईकमान को कोसने लगे हैं। अब देखते हैं आगे क्या होता है ?
कमलप्रीत बॉस भी, मातहत भी

2002 के आईएएस डॉ. कमलप्रीत सिंह राज्य के कृषि उत्पादन आयुक्त हैं। एपीसी के अधीन कृषि के साथ सहकारिता और बागवानी ,पशुपालन-मछलीपालन विभाग भी आता है। इन विभागों के विभागाध्यक्षों और निगम-मंडल के एमडी भी एपीसी को रिपोर्ट करते हैं। सरकार ने भारी -भरकम विभाग के कर्ताधर्ता को स्कूल शिक्षा विभाग में सचिव और संचालक लोक शिक्षण बनाकर प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला का अधीनस्थ बना दिया है। लोग कह रहे हैं , यह शासन में कैसा कार्यविभाजन है ? एक अफसर शासन में बॉस भी और मातहत भी। कहते हैं कमलप्रीत सामान्य प्रशासन विभाग के सचिव के तौर पर आईएएस अफसरों की पोस्टिंग का काम देखते हैं, फिर भी इस विसंगति को क्यों दूर नहीं कर पा रहे हैं, यह बड़ा सवाल है ?

ये कैसी मज़बूरी ?

अनुशासनहीनता के आरोप में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर्मकार मंडल के अध्यक्ष सन्नी अग्रवाल ने हाल ही में संपन्न नगरीय-निकाय चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशियों का खूब चुनाव प्रचार किया। कांग्रेस के ही कुछ नेताओं ने उनका दौरा कार्यक्रम जारी किया। भूपेश सरकार के तीन साल होने पर जगह-जगह सन्नी के पोस्टर और होर्डिंग्स भी दिखे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने ही सन्नी को निलंबित करने का फैसला किया था। अब उनके नाक के नीचे ही सब कुछ हो रहा है , लेकिन वे कुछ नहीं कर पा रहे हैं। लोग कर रहे हैं यह कैसी मज़बूरी है ?

यूपी के साथ खैरागढ़ उपचुनाव ?

कहा जा रहा है उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव के साथ ही खैरागढ़ में उपचुनाव करा लिया जाएगा। पिछले महीने जोगी कांग्रेस के विधायक देवव्रत सिंह के आकस्मिक निधन के कारण खैरागढ़ विधानसभा सीट खाली हो गई। माना जा रहा है की खैरागढ़ में जोगी कांग्रेस इस बार शायद ही नजर आए, यहाँ तो भाजपा और कांग्रेस में कांटे का मुकाबला होने वाला है। इसका संकेत जनता ने खैरागढ़ नगर पालिका चुनाव में दे दिया है। नगर पालिका के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के 10-10 पार्षद चुने गए हैं। माना जा रहा है कि जोड़-तोडक़र कांग्रेस यहाँ अपना अध्यक्ष बनवा लेगी, लेकिन उपचुनाव में जीत दोनों के लिए आसान नहीं रहने वाला है। कहते हैं खैरागढ़ में जीत लिए रायपुर से कांग्रेस के बड़े नेताओं को आना पड़ा और मुख्यमंत्री को खैरागढ़ को जिला बनाने का आश्वासन देना पड़ा, तब जाकर कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना।

तीन आईपीएस को जबरिया सेवानिवृति की खबर

कहते हैं राज्य की भूपेश बघेल सरकार तीन आईपीएस अफसरों को जबरिया सेवानिवृति देने के लिए प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा है। लोगों का मानना है कि भारत सरकार राज्य के प्रस्ताव को हरी झंडी देगी, इसकी संभावना कम है, क्योंकि दो अफसर तो कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। जबरिया सेवानिवृति के दायरे में आने वाले सभी अफसर काफी सीनियर हैं। दो निलंबित भी हैं। इनमें से एक अफसर का भूपेश सरकार से पहले दिन से ही 36 का आंकड़ा है , जबकि दो तो भूपेश के राज में शुरूआती दिनों में महत्वपूर्ण पदों पर तैनात होकर आँख के तारे भी रह चुके हैं, अब लोगों को समझ नहीं आ रहा है कि ऐसा क्या हो गया कि सरकार उन्हें निकाल-बाहर करने पर उतारू हो गई है। कहा जा रहा है कि मामला चाहे जो भी हो तीनों अफसरों को निकालना इतना आसान नहीं है।

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(डिस्क्लेमर – हमने लेखक के मूल लेख में कोई भी बदलाव नही किया है। प्रकाशित पोस्ट लेखक के मूल स्वरूप में है।)

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