झारखंड के गुमला जिले के तेलगांव में वर्षों तक लिव इन रिलेशन में रहे 101 जोड़ों ने विवाह बंधन में बंधकर दांपत्य की डोर को और भी मजबूत कर लिया। बिना शादी के पति-पत्नी की तरह साथ रहे इन जोडों के सामूहिक विवाह को अब सामाजिक और कानूनी मान्यता भी मिल गई। आदिवासी समाज में बिना शादी साथ रहने की छूट है। हालांकि बाद में शादी को सामाजिक आयोजन का रूप देना अनिवार्य है। गरीबी के कारण ये जोड़े न तो विवाह समारोह का आयोजन कर पा रहे थे न ही परंपरा के अनुरूप समाज के लोगों को शादी की दावत दे पा रहे थे। ऐसे में समाज इन्हें पति-पत्नी के रूप में मान्यता नहीं दे रहा था। समाज में होनेवाले आयोजनों में इन्हें पति-पत्नी के रूप में शामिल होने की स्वीकृति भी नहीं थी।
इस शादी में ऐसे जोड़े भी मौजूद थे, जिनके चार-चार बच्चे हैं। लंबे समय से विवाह मंडप में बैठने और शहनाई की धुन सुनने की चाहत मन में दबाए इन जोड़ों की यह मुराद अरसे बाद ही सही, लेकिन पूरी हुई। इस मौके पर सभी जोड़े गदगद नजर आई। बाल-बच्चेदार हो चुकी महिलाएं एक बार फिर नई-नवेली दुल्हन बनीं और उनके पति भी दूल्हे की तरह सज-धज कर आए। विधि-विधान के साथ सभी जोड़ों के विवाह पूरी हुई।
सामूहिक विवाह समारोह में पहुंचे दो जोड़ों ने अपने छोटे बच्चों को गोद में लेकर विवाह की रस्म पूरी की। सुचिता उरांव व बहुरा उरांव दो साल का बेटा रोहित उरांव और चौथी देवी व अनिल उरांव की दो साल की बेटी रिया कुमारी माता-पिता की शादी के गवाह बने। गुमला के पहना मिज पिछले 10 वर्षों से तेबो देवी के साथ लिव इन रिलेशन में रह रहे हैं। उनके चार बच्चे भी हैं। ये दोनों भी विवाह बंधन में बंधकर खुश नजर आए। कार्यक्रम के आयोजन नवयुवक संघ तेलगांव ने किया था। विवाह की रस्में हिदू व सरना धर्म के मुताबिक पूरी की गईं।