
शोधकर्ताओं ने एक हालिया अध्ययन में पाया कि बच्चों में स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) का जल्द पता लगाकर उसका इलाज शुरू करना काफी किफायती हो सकता है। यह एक आनुवंशिक बीमारी है, जिसमें मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैैं और धीरे-धीरे उनका क्षय होने लगता है। शोध निष्कर्ष ‘डेवलपमेंटल मेडिसिन एंड चाइल्ड न्यूरोलाजी” नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। अध्ययन के दौरान शोधार्थियों ने एसएमए के 149 मरीजों के आंकड़ों का विश्लेषण किया। इनमें 93 ऐसे थे, जिनका इलाज नहीं हुआ था और 42 का लक्षण सामने आने के बाद इलाज किया गया। 14 ऐसे थे जिनकी शुरुआत में ही जांच के बाद इलाज किया गया। इस बीमारी के इलाज में दवा पर अधिक लागत आती है। ऐसे में जिन मरीजों का सही इलाज नहीं हुआ था, उन पर खर्च भी कम था। लेकिन, लक्षण्ाों के विकास के बाद जिन लोगों की बीमारी का इलाज शुरू हुआ, उनके मुकाबले बाल्यावस्था में जांच के जरिये रोग का पता लगाकर इलाज शुरू करना ज्यादा किफायती रहा। यूनिवर्सिटी आफ लीज (बेल्जियम) व यूनिवर्सिटी आफ आक्सफोर्ड (ब्रिटेन) से जुड़े अध्ययन के वरिष्ठ लेखक लारेंस सर्वेइस के अनुसार, ‘ये आंकड़े महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इनका वास्ता व्यावहारिक जीवन से है। नवजात की एसएमए जांच से न सिर्फ उसका भविष्य बेहतर हो सकता है, बल्कि उसके अभिभावक की जेब पर बोझ भी कम पड़ता है। यह आम लोगों के लिए एक बड़ी राहत होगी।”