अहमदाबाद विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर विवेक तानावडे के नेतृत्व में शोधकर्ताओं की टीम को मानव लार से जुड़ी एक महत्वपूर्ण खोज में सफलता मिली है। यह मुख कैंसर के इलाज में प्रयुक्त होने वाली पारंपरिक बायोप्सी पद्धति में बड़ा बलाव ला सकती है।
विश्वविद्यालय के स्कूल आफ आर्टस एंड साइंस के ओरल कैंसर क्लस्टर से जुड़े शोधकर्ताओं व एचसीजी कैंसर सेंटर के डिपार्टमेंट आफ हेड एंड नेक ओंकोलाजी के डाक्टरों ने मरीज की लार में मौजूद एक नए माइक्रो राइबोन्यूक्लिक एसिड (एमआइ-आरएनए) का पता लगाया है, जो ट्यूमर की आक्रमकता का पता लगाने और मुख कैंसर के बेहतर इलाज में मददगार हो सकता है।
स्विट्जरलैंड की इंटरनेशनल जर्नल आफ मालिक्यूलर साइंसेज में प्रकाशित अध्ययन निष्कर्ष के अनुसार, अब मरीजों को मुख कैंसर के विकास की निगरानी के लिए बायोप्सी कराने के बजाय एक ट्यूब में थूक के नमूने देने होंगे। डा. विवेक कहते हैं, “जबतक मुंह में कोई धब्बा या ट्यूमर दिखने नहीं लगता, तबतक मरीज डाक्टर से संपर्क नहीं करते। जब वे डाक्टर को संपर्क करते हैं, तबतक काफी देर हो चुकी होती है।
आपरेशन करके ट्यूमर को निकाल भी दिया जाए, तो यह पता नहीं होता कि कैंसर कहां तक फैल चुका है। कैंसर के विकास की निगरानी के लिए हर बार बायोप्सी करनी पड़ती है। हमारी यह खोज बिना आपरेशन मुख के कैंसर के प्रभावी इलाज में मददगार साबित होगी।”