कही-सुनी ( 19-DEC-21): मंच के पीछे की कहानियाँ- राजनीति, प्रशासन और राजनीतिक दलों की

रवि भोई ( लेखक, पत्रिका समवेत सृजन के प्रबंध संपादक और स्वतंत्र पत्रकार हैं।)



मंत्रिमंडल से किसका पत्ता साफ़ होगा और किसकी लाटरी लगेगी ?

छत्तीसगढ़ में मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चा कई बार चल चुकी है, पर इस बार मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ही फेरबदल की बात कर राजनीतिक माहौल को गरमा दिया है। कहा जा रहा है कि नए साल में भूपेश मंत्रिमंडल से कुछ मंत्री बाहर होंगे और कुछ नए चेहरे दिखेंगे। चर्चा है कि भूपेश कैबिनेट से दो अनुसूचित जनजाति , एक अनुसूचित जाति और एक सामान्य वर्ग के मंत्री को बदला जा सकता है। भूपेश कैबिनेट में इस बार के फेरबदल में क्षेत्रीय असंतुलन को दूर किए जाने की भी बात की जा रही है। 13 सदस्यीय भूपेश कैबिनेट में अभी दुर्ग संभाग से छह मंत्री हैं, वहीँ सरगुजा संभाग से तीन मंत्री हैं , जबकि बस्तर संभाग से केवल एक मंत्री हैं। कहते हैं स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव भी कैबिनेट से दो मंत्रियों को ड्राप करने के लिए दबाव बनाए हुए हैं। माना जा रहा है इस बार मंत्रिमंडल में बस्तर का प्रतिनिधित्व बढ़ाया जाएगा। कहा जा रहा है मुख्यमंत्री 10 मंत्रियों में ही हेरफेर कर सकते हैं। दो मंत्री तो हाईकमान के कोटे से हैं , उनको छेड़ने का मतलब बर्रे की छत में हाथ डालना है। फेरबदल की चर्चा के साथ लोगों को नई टीम का इंतजार है।

भूपेश बघेल के तीन साल

राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों-विरोधियों को ठिकाने लगाते और सत्ता में नई छाप छोड़ते मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 17 दिसंबर को तीन साल का कार्यकाल पूरा कर लिया। ढाई-ढाई साल की हवाबाजी और उठापटक के बीच भूपेश बघेल ने तीन सालों में अपनी लाइन काफी लंबी कर ली है। राज्य की राजनीति से राष्ट्र की राजनीति में पांव पसारकर राजनीति के कुशल खिलाड़ी होने का परिचय भी दे दिया है । 2018 में मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल नेता अब भूपेश बघेल से रेस में काफी पीछे या थके -हारे नजर आने लगे हैं। वे इन तीन सालों में विपक्ष के चक्रव्यूह को भी आसानी से भेदने में सफल दिखे। केंद्र सरकार से अंतर्विरोधों के बावजूद राष्ट्रीय स्तर के कई पुरस्कार छत्तीसगढ़ की झोली में कर भूपेश बघेल ने राज्य को नई पहचान दिला दी है। भूपेश बघेल तीन साल तो अंगद के पांव की तरह जमे रहे, उन्हें कोई हिला नहीं पाया। वे एक सशक्त और फैसले लेने वाले नेता के तौर पर उभरे भी। अब देखते हैं आने वाला दो साल कैसे बीतता है और छत्तीसगढ़ को क्या दिशा देते हैं ?

सुरक्षित सीट की तलाश में एक मंत्री

कहते हैं राज्य के एक मंत्री अगले विधानसभा चुनाव के लिए अभी से सुरक्षित सीट की तलाश में लग गए हैं। अपने राजनीतिक जीवन में अलग-अलग विधानसभा सीटों से भाग्य आजमा चुके मंत्री जी राजधानी के आसपास के जिलों की सीट का आंकलन करने में लग गए हैं। रायपुर के पडोसी जिले में दो सीटें ऐसी हैं , जहां कांग्रेस के विधायक नहीं हैं , उन दो सीटों पर मंत्री जी की नजर हैं। कहते हैं मंत्री जी ने इन दो सीटों के लोगों और कार्यकर्ताओं से मेलजोल भी बढ़ा दिया है। समय आने पर ही मंत्री जी रणनीति उजागर होगी।

राजेश मिश्रा को पोस्टिंग का इंतजार

1990 बैच के आईपीएस राजेश मिश्रा केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से वापसी कर पुलिस मुख्यालय में आमद दे दी है। 2016 से बीएसएफ में प्रतिनियुक्ति पर रहे राजेश मिश्रा को अब छत्तीसगढ़ में पोस्टिंग का इंतजार है। पुलिस मुख्यालय में कई पदों के साथ रायगढ़, दुर्ग समेत कई जिलों के एसपी और सरगुजा व बिलासपुर के आईजी रहे राजेश मिश्रा अगले साल डीजी के तौर पर प्रमोट हो जाएंगे। स्पेशल डीजी आरके विज 31 दिसंबर को रिटायर हो जाएंगे। इसके बाद राज्य में डीजी का एक पद खाली हो जाएगा। माना जा रहा है कि फ़िलहाल राजेश मिश्रा को आरके विज का काम सौंप दिया जाएगा , फिर प्रमोशन के बाद नई पोस्टिंग मिल जाएगी। वैसे अशोक जुनेजा के नए डीजीपी बनने के बाद पुलिस में शीर्ष स्तर पर बदलाव का इंतजार किया जा रहा है।

लीडर का पुलिस में असर

कहते हैं न लीडर का असर पूरे टीम पर पड़ता है, ऐसा ही कुछ आजकल पुलिस महकमे में दिखाई पड़ रहा है। अशोक जुनेजा को राज्य का पुलिस प्रमुख बनाए जाने के बाद कई जिलों की पुलिस ने राज्य में चिटफंड कंपनियों के डायरेक्टर्स की धड़ाधड़ गिरफ्तारी शुरू कर दी है। किसानों और आम लोगों की मेहनत की कमाई हड़प करने वाले कई चिटफंड कंपनियों के मालिक पकडे जा चुके हैं। पिछले ढाई-तीन साल से दुबके पड़े चिटफंड कंपनियों के डायरेक्टर्स को पुलिस ने जिस तरह गिरफ्तार करना शुरू किया है , उससे तो ऐसा लगता है कि उन्हें सब पता था और इशारे का इंतजार था। ग्रीन सिग्लन मिलते ही एक्शन में आ गए।

उत्तरप्रदेश चुनाव के नाम पर वसूली

चर्चा है कि उत्तरप्रदेश चुनाव के लिए राज्य के एक निर्माण विभाग के अफसरों से चंदा वसूली का काम शुरू हो गया है। यूपी चुनाव के लिए अभी से छत्तीसगढ़ से उगाही को लेकर अफसरों ने सिर पकड़ लिया है। कहा तो यह भी जा रहा कि विभागीय मंत्री के यहां से फरमान है। अब इसमें कितनी सच्चाई है , यह अलग बात है। कामकाज को लेकर चर्चित इस निर्माण विभाग पर केंद्र सरकार की नजर है , क्योंकि भारत सरकार की मदद से विभाग में एक बड़ा प्रोजेक्ट चल रहा है।
मोर्चे पर किरण कौशल
धान खरीदी और बारदाने की मारामारी के बीच छत्तीसगढ़ मार्कफेड की प्रबंध संचालक किरण कौशल समस्या के समाधान के लिए जुट गई हैं। किसानों को धान बेचने के लिए बाजार से ऊंचे दाम पर बोरे खरीदने पड़ रहे हैं। सरकार इसकी कुछ भरपाई तो करेगी, लेकिन किसानों को मार्कफेड से बोरा मिल जाय, अच्छी बात है , जैसे पहले होता था। किरण कौशल पिछले दिनों केंद्रीय जूट आयुक्त मलय चक्रवर्ती और अन्य अफसरों से मुलाक़ात कर बोरे की उपलब्धता सुनिश्चित कराने का आग्रह किया है। अब देखते हैं क्या नतीजा आता है ? इस बार छत्तीसगढ़ में 105 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी होनी है।

सुरक्षित सीट की तलाश में भाजपा नेता

भाजपा के एक आसमानी नेता की नजर आजकल लोकसभा चुनाव पर जा टिकी है। भाजपा में प्रवेश के साथ विधानसभा में जोर आजमाइश का अवसर पाने वाले नेता बिलासपुर या रायपुर संभाग की एक लोकसभा सीट में चुनाव लड़ने के इच्छुक बताए जाते हैं। कहते हैं इसके लिए उन्होंने लोगों से संपर्क साधना शुरू कर दिया है। पहले चर्चा थी कि वे अपने लिए सुरक्षित विधानसभा सीट की तलाश कर रहे हैं। नेताजी की चाहे जो इच्छा हो या कुछ भी ग्राउंड बना लें, मर्जी तो भाजपा हाईकमान की चलेगी।

97 बैच के आईएएस बनेंगे प्रमुख सचिव

चर्चा है कि छत्तीसगढ़ कैडर के 1997 बैच के आईएएस सुबोध कुमार सिंह, डॉ. एम गीता और निहारिका बारिक सिंह को प्रमुख सचिव के पद पर पदोन्नत करने की प्रक्रिया सरकार ने शुरू कर दी है। संभवतः नए साल में पदोन्नत हो जाएंगे। सुबोध सिंह केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर हैं , जबकि निहारिका बारिक चाइल्ड केयर लीव पर हैं। दोनों को प्रोफार्मा पदोन्नति दे दी जाएगी। एम गीता दिल्ली में छत्तीसगढ़ सरकार के दफ्तर में पदस्थ हैं। कहा जा रहा है जनवरी में 2009 बैच के आईएएस भी विशेष सचिव बन जाएंगे।

10-12 जिले के कलेक्टर बदलेंगे

खबर है कि जनवरी में राज्य के 10-12 जिलों के कलेक्टर बदले जा सकते हैं। इसमें अलग-अलग जिलों में कलेक्टरी कर चुके अफसरों के प्रभावित होने की संभावना है। कहा जा रहा है कि रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर, सरगुजा और बस्तर सभी संभागों के एक-दो कलेक्टर इधर-उधर होंगे या कुछ नए लोगों को मौका मिल सकता है।

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(डिस्क्लेमर – हमने लेखक के मूल लेख में कोई भी बदलाव नही किया है। प्रकाशित पोस्ट लेखक के मूल स्वरूप में है।)

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