मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 के नामांकन वापसी का समय खत्म होने के बाद कांग्रेस ने बड़ा एक्शन लिया है। पार्टी की बात न मानने वाले 39 बागी नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया है। ये सभी निर्दलीय प्रत्याशियों के तौर पर चुनावी मैदान में उतर गए हैं। अब पीसीसी अध्यक्ष कमलनाथ के आदेश पर सभी बागी को तत्काल प्रभाव से कांग्रेस से 6 वर्ष के लिए निष्कासित कर दिया गया है। वहीं, बीजेपी ने भी बगावती तेवर दिखाने वाले कई दिग्गज नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाते हुए निष्काषित कर दिया है। सभी को 6 साल के लिए पार्टी से बाहर कर दिया गया है।
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए उनके ही 39 नेता मुसीबत खड़ी करने वाले हैं। इनको मनाने की तमाम कोशिशें नाकाम होने के बाद आखिरकार पार्टी ने उनको पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। ये नेता कांग्रेस का हाथ छोड़कर निर्दलीय या दूसरे दलों से चुनाव मैदान में उतरे हैं। इन सभी बागियों की सदस्यता छह साल के लिए रद्द कर निष्कासित कर दिया गया है। वहीं, प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के आश्वासन के बाद चुनाव मैदान में उतरने की जिद छोड़ने वाली पूर्व डिप्टी कलेक्टर निशा बांगरे को पार्टी ने प्रदेश महामंत्री बनाया है। इस बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद प्रेमचंद गुड्डू ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने मल्लिकार्जुन खड़गे को इस्तीफा भेज कमलनाथ और दिग्विजय पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने आपस में ही पूरे टिकट बांटकर अपने समर्थकों को दिए हैं। प्रदेश कांग्रेस में पट्ठावाद हावी है।
बागियों पर बीजेपी ने भी अनुशासनात्मक कार्रवाई की है। बगावत करने वाले एक पूर्व मंत्री और छह पूर्व विधायक सहित 35 नेताओं को पार्टी से छह वर्ष के लिए निष्कासित कर दिया है। इनमें से अधिकांश पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों के विरुद्ध चुनाव लड़ रहे हैं। पार्टी से निष्कासित प्रमुख नेताओं में पूर्व मंत्री रुस्तम सिंह, छह पूर्व विधायक मुन्ना सिंह भदौरिया, रसाल सिंह, ममता मीणा, केके श्रीवास्तव, माधव सिंह डाबर और संतोष जोशी शामिल हैं। वर्तमान विधायक केदारनाथ शुक्ला और हरदा नगर पालिका अध्यक्ष सुरेंद्र जैन को भी पार्टी ने बाहर का रास्त दिखाया है। बागी होकर नया राजनीतिक दल बनाने वाले नारायण त्रिपाठी को पहले ही बीजेपी से निष्कासित किया जा चुका है।
कांग्रेस और बीजेपी ने अपने-अपने बागियों को मनाने की कोशिशें नाम वापसी तक जारी रखा। जब उन पर मान-मनौव्वल का कोई असर नहीं हुआ तो दोनों ही दलों ने अनुशासनात्मक कार्रवाई की। दोनों ने अपने-अपने बागियों को छह-छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया। यह कार्रवाई दोनों ही दलों की राजनीतिक संतुष्टि का तत्कालिक पैमाना हो सकता है, लेकिन बागियों पर कार्रवाई का असर मतदाताओं के मन पर नहीं होता है। अंतत: चुनाव में जीत-हार के फैसला मतदाताओं को करना है।