सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यों में डिप्टी CM की नियुक्ति संविधान के खिलाफ नहीं है। यह सिर्फ वरिष्ठ नेताओं को दिया जाने वाला एक ओहदा है। इस पद पर नियुक्त व्यक्ति को कोई अतिरिक्त फायदा भी नहीं मिलता। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही बेंच ने कहा कि सरकार में पार्टियों के गठबंधन या अन्य वरिष्ठ नेताओं को अधिक महत्व देने के लिए यह प्रक्रिया अपनाई जाती है।
बेंच ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि डिप्टी CM की नियुक्ति को किसी भी तरह से असंवैधानिक नहीं कहा जा सकता। डिप्टी CM राज्य सरकार में पहला और सबसे अहम मंत्री होता है। यह याचिका पब्लिक पॉलिटिकल पार्टी ने लगाई थी। याचिका में दावा किया गया था कि संविधान में डिप्टी CM जैसा कोई पद नहीं है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है। ऐसी नियुक्ति एक गलत उदाहरण पेश करती है। याचिका में इस बात का भी दावा किया गया था कि डिप्टी CM को मुख्यमंत्री की मदद के लिए नियुक्त किया जाता है। वह मुख्यमंत्री के बराबर होता है और उसे समान वेतन और सुविधाएं मिलती हैं।