बालोद। जिले के अपर कलेक्टर ए.के.बाजपेयी को पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी की उपाधि प्रदान की गई है। श्री बाजपेयी को यह उपाधि सामाजिक विज्ञान संकाय के तहत उनके शोध कार्य दुर्ग जिले में जिला प्रशासन के बदलते स्वरूप का ऐतिहासिक विश्लेषण ग्रामीण विकास के विशेष संदर्भ में ( 1994-2015 तक ) के लिए प्रदाय की गई है। यह शोध कार्य डॉ.के.के.अग्रवाल प्राध्यापक डॉ.खूबचंद बघेल शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय भिलाई 3 दुर्ग के निर्देशन में किया गया जबकि शोध सह निर्देशक डॉ.अनिल कुमार पाण्डेय विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय दुर्ग थे। डॉ.बाजपेयी ने बताया कि प्रस्तुत शोध का उद्देश्य यह पता लगाना था कि दुर्ग जिला प्रशासन के स्वरूप और कार्यप्रणाली में क्या बदलाव आया है। ग्रामीण विकास के लिए दुर्ग जिला प्रशासन कितना सचेत और सक्रिय रहा है। कब कब किस हद तक ग्रामीण विकास के प्रति कृत संकल्पि योजनाएं बनी और इन योजनाओं के क्रियान्वयन में जिला प्रशासन कितना सचेत और सक्रिय रहा है। इस संदर्भ में प्रशासन के अधिकारीगण कर्मचारीगण, जनप्रतिनिधिगण और हितग्राहियों की सोच क्या है। डॉ.बाजपेयी ने बताया कि आजादी के बाद से अब तक जिला प्रशासन के ढांचागत स्वरूप में कोई बदलाव परिलक्षित नहीं होता, लेकिन उसकी कार्यप्रणाली में उसकी सोच में उसके व्यवहार में काफी बदलाव दिखाई देता है। आज जिला प्रशासन ने राजस्व संग्रहण और कानून व्यवस्था के सीमित दायरे से बाहर आकर अपने कार्यक्षेत्र में व्यापक विस्तार लिया है। उसकी कार्यप्रणाली सामयिक परिस्थितियों के अनुसार बदल गई है। अब प्रशासन को ऐसे दायित्वों का निर्वहन करना पड़ रहा है जो अतीत में उसकी सीमाओं से परे थी। नागरिक सेवाओं के प्रति अब वह ज्यादा प्रतिबद्ध और संवेदनशील हुआ है। पंचायती राज व्यवस्था ने जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को एक दूसरे के करीब लाने का काम किया है और दोनों में बेेहतर तालमेल के साथ विकास की गतिविधियां मूर्तरूप ले रही है। नरवा गरूवा घुरूवा बाड़ी योजना के माध्यम से छग की मूल संस्कृति को अक्षुण रखते हुए गांव के विकास की जो परिकल्पनाएं की गई है वह गढ़वो नवा छत्तीसगढ़ के ध्येय वाक्यों और संकल्पानाओं के साथ साकार हो रही है। यह शोध प्रबंध इन्ही विषयों पर केन्द्रित है। यह शोध प्रबंध न केवल इतिहास के विद्याथिज़्यों और भविष्य के शोधाथिज़्यों के लिए बल्कि प्रशासनिक अधिकारियों और प्रतियोगी परिक्षाओं में शामिल होने वाले उम्मीदवारों के लिए भी उपयोगी साबित होगा। डॉ.बाजपेयी ने शोध कार्य में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष सहयोग करने वाले सभी का आभार व्यक्त किया है।
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