भीमा कोरेगांव मुकदमें में सुप्रीम कोर्ट ने दो आरोपियों वेरनन गोंजाल्वेस और अरुण फरेरा को आखिरकार पांच साल बाद जमानत दे दी। दोनों आरोपी पिछले पांच साल से कस्टडी में हैं। उन पर गंभीर आरोप हैं। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि केवल इस आधार पर उन्हें जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता कि उन पर आरोप गंभीर है।
गौर हो कि गोंजाल्वेस और फरेरा को 2018 में मुंबई की तलोजा जेल भेजा गया था। बॉम्बे हाईकोर्ट से जमानत नामंजूर होने के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। हाईकोर्ट ने उनकी बेल एप्लीकेशन को खारिज कर दिया, जबकि सह-आरोपी सुधा भारद्वाज को जमानत दे दी।
सुप्रीम कोर्ट दोनों आरोपियों जमानत देने के साथ पांच शर्तें रखी हैं। इन शर्तों में वे महाराष्ट्र नहीं छोड़ सकते हैं। दोनों के पास एक-एक मोबाइल रहेगा। मोबाइल फोन कभी स्विच्ड ऑफ नहीं होगा। अपनी लोकेशन भी हमेशा ऑन रखेंगे। आरोपियों का फोन इस केस के इंचार्ज NIA अफसर से पेयर रहेगा।
गौर हो कि पुणे में एल्गर परिषद सभा 31 दिसंबर 2017 को हुई थी। इसकी फंडिंग नक्सलियों ने की थी। सभा में भड़काऊ भाषण के चलते पुणे के भीमा-कोरेगांव वॉर मेमोरियल पर अगले दिन यानी 1 जनवरी 2018 को हिंसा भड़क गई।