सूर्यनारायण की उपासना का पर्व छठ पूजा पर 21 सौ दीपों से छटा बिखरेगी। षष्ठी तिथि गुरुवार को डूबते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाएगा। सप्तमी तिथि शुक्रवार की प्रातःकाल उदीयमान सूर्य को अर्घ्यदान कर पर्व का समापन होगा। पूजा का मुख्य आयोजन शीतलदास की बगिया में शाम को किया जाएगा। शाम 5.30 बजे 2100 दीपदान के साथ आतिशबाजी एवं पुष्पवर्षा की जाएगी। भोजपुरी एकता मंच के अध्यक्ष कुंवर प्रसाद ने बताया कि छठ पर्व का सबसे अधिक महत्व छठ पूजा की पवित्रता में है। षष्ठी के दिन संध्याकाल में नदी या तालाब के किनारे व्रती महिलाएं एवं पुरुष सूर्यास्त के समय अनेक प्रकार के पकवानों को बांस के सूप में सजाकर सूर्य को दोनों हाथों से अर्घ्य अर्पित करते हैं।
सप्तमी तिथि को प्रातः ऊगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद प्रसाद ग्रहण किया जाता है। इस दिनव्रत समाप्त होता है और व्रती द्वारा भोजन ग्रहण किया जाता है। वहीं, पांच नंबर स्थित घाट पर गोस्वामी समाज द्वारा भी पूजन की व्यवस्था की गई है। रवियोग में डूबते सूर्य को दिया जाएगा अर्घ्यः पं. रामजीवन दुबे गुरुजी के मुताबिक कार्तिक शुक्ल पक्ष सूर्य षष्ठी व्रत गुरुवार 7 नवंबर को छठ पूजा अर्थात् रवि की पूजा रवि योग में की जाएगी। शुक्रवार को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करेंगे। बुधवार को खरना है। श्रद्धालुओं ने खीर का प्रसाद सूर्यदेव को अर्पण किया। छठ मैया का उपवास रखने वाले लोग अपनी मन्नतों व पुत्र की लंबी आयु को लेकर पूजा अर्चना करते हैं और अ सूर्यदेव को भोग लगाते हैं। राजधानी में करीब दो लाख लोग ऐसे हैं जो यूपी एवं बिहार से संबंधिथ हैं।
भोजपुरी एकता मंच के तत्वावधान में छठ पूजा का आयोजन शीतलदास की बगिया के अलावा अन्य घाटों शाहपुरा झील, खटलापुरा घाट, कालीघाट, मां शीतला माता घाट, aबैरागढ़ स्थित बेटागांव घाट, हताईखेड़ा, सरस्वती मंदिर भेल, श्री विश्वकर्मा मंदिर सूखी सेवनियां, न्यू जेल रोड स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर समेत कई स्थानों पर छठ पूजा का आयोजन होगा।
छठ के व्रत के संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। उनमें से एक कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। माना जाता है कि उसके बाद द्रौपदी की मनोकामनाएं पूरी हुईं और पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। लोकपरंपरा के अनुसार सूर्यदेव और छठी माता का संबंध भाई-बहन का है। षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने ही की थी। छठ पर्व की परंपरा में बहुत गहरा विज्ञान छुपा है। षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर पर आती है। इस समय सूर्य की पराबैगनी किरणें पृथ्वी की सतह पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती हैं।
छठ पूजन के दिन सुबह उठकर सूर्यदेव को प्रणाम करें। इसके बाद सूर्ययंत्र गंगाजल व गाय के दूध से पवित्र करें। विधिपूर्वक पूजन के बाद सूर्य मंत्र ऊं घृणि सूर्यायः नमः का जप करने के बाद इसकी स्थापना पूजन स्थल पर कर दें।









