कोरोना संक्रमित बच्चों के इलाज के लिए जरूरी गाइडलाइन जारी की गई है। इसके तहत संक्रमित बच्चों को रेमडेसिविर देने से सख्त मना किया गया है। साथ ही कहा गया है कि एसिंप्टोमेटिक और माइल्ड कैटेगरी के बच्चों में किसी तरह की जांच की जरूरत नहीं है, जैसे- CBC, LFT, KFT, यूरीन रूटीन। हालांकि इन जांचों की जरूरत सिर्फ मॉडरेट और सीवियर बच्चों को होती है। यह भी कहा गया है कि 5 साल या इससे कम उम्र के बच्चों को मास्क की भी जरूरत नहीं है।गाइलाइंस 18 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए जारी की गई है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ हेल्थ सर्विसेज की तरफ से जारी गाइडलाइन के मुताबिक माइल्ड लक्षणों में ‘ऑक्सीजन सैचुरेशन कमरे में 94 प्रतिशत या इससे ज्यादा, गले में दिक्कत, खांसने पर सांस लेने में परेशानी का न होना’ शामिल है। इसका ट्रीटमेंट- बुखार में 4-6 घंटे पर पैरासिटामोल देना, खांसी के लिए गर्म पानी से गरारे करना है। मॉनिटरिंग चार्ट- रेस्पिरेटरी रेट (2-3 बार), सांस की दिक्कत, बुखार, बीपी, SpO2, नाखून या होंठ का नीला, छाती खींचने को लेकर सुबह 8 से रात 8 बजे तक 4 बार करें।
आइसोलेशन में गए बच्चों से परिवार के सदस्य संपर्क में रहें। पॉजिटिव बातचीत करें। फोन या वीडियो कॉल का सहारा लिया जा सकता है। मॉडरेट कैटेगरी इन्फेक्शन (SpO 2: 90-93 प्रतिशत)। इसमें निमोनिया की शिकायत हो सकती है, इसलिए इसपर निगरानी रखने की जरूरत है। एसिंप्टोमेटिक और माइल्ड कैटेगरी इन्फेक्शन के बच्चों में ऑक्सीजन सैचुरेशन को समझने के लिए घर पर 6 मिनट वॉक टेस्ट कराया जा सकता है।
6 मिनट वॉक टेस्ट (12 साल से ऊपर के बच्चे घर के बड़े की निगरानी में करें), ये कार्डियोपल्मोनरी स्थिति को समझने को लेकर क्लीनिकल टेस्ट का एक तरीका है। इसमें बच्चे की अंगुली में पल्स ऑक्सीमीटर लगा दें और कमरे में छह मिनट लगातार चलने के लिए कहें। इस दौरान ऑक्सीजन सैचुरेशन के स्तर को देखें। अगर 94 प्रतिशत से वो कम हो जाता है या फिर सैचुरेशन में 3-5 प्रतिशत ड्रॉप होता है या चलने पर बच्चे को सांस की दिक्कत महसूस होती है तब अस्पताल में दाखिल करने की नौबत आ सकती है।
यह टेस्ट 6 से 8 घंटे पर घर में किया जा सकता है। उन बच्चों को ये टेस्ट न करवाएं जिनको अनकंट्रोल्ड अस्थमा हो। वहीं मास्क के इस्तेमाल की बात करें तो 5 साल या इससे कम उम्र के बच्चों को मास्क की जरूरत नहीं है। हालांकि 6 से 11 साल के बच्चे पैरेंट्स की निगरानी में मास्क लगा सकते हैं और 12 साल या इससे अधिक उम्र के बच्चे ठीक वैसे ही मास्क का इस्तेमाल कर सकते हैं जैसे कि बड़े करते हैं।
एसिंप्टोमेटिक और माइल्ड बच्चों पर स्टेरॉयड का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। स्टेरॉयड सिर्फ अस्पताल में एडमिट मॉडरेट, सीवियर और क्रिटिकल बच्चों को ही सख्त निगरानी में दिया जाना चाहिए। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि सही समय पर सही डोज, उचित समय तक ही स्टेरॉयड दें।
इस टेस्ट को लेकर इलाज कर रहे डॉक्टर को हाईली सेलेक्टिव होना चाहिए। जब बहुत जरूरी हो तभी यह टेस्ट किया जाना चाहिए। HRCT स्कैन को रूटीन के तौर पर नहीं किया जाना चाहिए। कोविड-19 इन्फेक्शन की स्क्रीनिंग को लेकर HRCT नहीं होना चाहिए। एसिंप्टोमेटिक और माइल्ड मरीजों का यह टेस्ट करने से बचें। HRCT स्कैन तभी किया जाना चाहिए जब मरीज शक के दायरे में या मॉडरेट कैटेगरी में हो या जिसकी हालत इलाज के बाद भी लगातार बिगड़ती जा रही हो।