
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की जेल से सरकार चलाने की अनुमति देने की मांग वाली याचिका ख़ारिज कर दी गई। इस याचिका पर पर नाराजगी व्यक्त करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने सवाल किया कि क्या हमें देश में आपातकाल या मार्शल लॉ लगाना चाहिए? याचिकाकर्ता और अधिवक्ता श्रीकांत प्रसाद पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत पीएस अरोड़ा की पीठ ने कहा कि वह न तो मीडिया को अपने विचार प्रसारित न करने का निर्देश देकर सेंसरशिप लगा सकती है और न ही राजनीतिक विरोधियों को केजरीवाल के इस्तीफे की मांग करने वाले बयान देने से रोक सकती है। मुख्य पीठ ने पूछा कि हम प्रेस और राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ प्रतिबंधात्मक आदेश कैसे पारित कर सकते हैं? याचिका में दिल्ली सरकार को तिहाड़ जेल में केजरीवाल को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से मंत्रियों से बातचीत करने समेत अन्य पर्याप्त सुविधाएं प्रदान करने का निर्देश देने की भी मांग की गई थी, ताकि वह जेल से अपने मंत्रियों और अन्य विधायकों के साथ बातचीत कर दिल्ली सरकार को प्रभावी ढंग से चला सकें।
याचिका में कहा गया है कि पिछले 7 वर्षों से दिल्ली के शासन का शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड है। संविधान और न ही किसी कानून ने मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री सहित किसी भी मंत्री को जेल से सरकार चलाने से रोका है। याचिकाकर्ता ने कहा कि यदि कोई राजनीतिक व्यक्ति न्यायिक हिरासत में है तो यह आरपीए के तहत उल्लिखित दोषी की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आएगा। हालांकि, पीठ ने कहा कि केजरीवाल ने अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ पहले ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी है। शीर्ष अदालत के पास मामला है, ऐसे में उन्हें जेल से सरकार चलाने की अनुमति देने के लिए किसी निर्देश की जरूरत नहीं है।