अपना घर मामले में में बालिकाओं को स्थानांतरित करने बाल कल्याण समिति बिलासपुर के आदेश को कलेक्टर ने रखा यथावत

माननीय उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश के परिप्रेक्ष्य में गठित जिला स्तरीय निरीक्षण समिति ने अवर होम बालिका गृह के जांच में पाई कई गंभीर त्रुटियां

कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी के समक्ष अभ्यावेदन प्रस्तुत करने के माननीय उच्च न्यायालय के अंतरिम आदेश का याचिकाकर्ता ने नहीं किया पालन

रायपुर। कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी बिलासपुर ने अवर होम बालिका गृह संस्था बिलासपुर में निवासरत बालिकाओं को शासकीय बालिका गृह सरकंडा स्थानांतरित किए जाने संबंधी बाल कल्याण समिति बिलासपुर के आदेश को यथावत रखा है। अवर होम बालिका गृह संस्था द्वारा दायर रिट पिटीशन के परिप्रेक्ष्य में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए अंतरिम आदेश के परिपालन में मामले की सुनवाई करते हुए कलेक्टर ने उक्त आदेश पारित किया। ज्ञातव्य है कि अवर होम बाल गृह बालिका बिलासपुर के निरीक्षण के दौरान जिला बाल सरंक्षण अधिकारी ने कई कमियां पाई थीं। संस्था द्वारा जे.जे.एक्ट के पालन में भी लापरवाही का मामला पकड़ में आया था।

अवर होम बालिका गृह के संचालक संजीव ठक्कर द्वारा संस्था में ही निवास करना तथा संस्था में आने वाले आगन्तुकों के संबंध में बाल कल्याण समिति से अथवा उच्च अधिकारियों से किसी भी प्रकार की अनुमति न लिए जाने तथा उच्चाधिकारियों के आदेशों की बार-बार अवहेलना का मामला प्रमाणित पाए जाने पर संस्था में संरक्षण प्राप्त बालिकाओं को अन्य शासकीय बालिका गृह में स्थानांतरित किए जाने की अनुशंसा की गई थी। जिसके परिप्रेक्ष्य में बाल कल्याण समिति बिलासपुर द्वारा 27 नवम्बर 2019 को अवर होम संस्था में निवासरत बालिकाओं को अन्य शासकीय बालिका गृह में स्थानांतरित किए जाने का आदेश पारित किया था। गौरतलब है कि बाल कल्याण समिति के उक्त आदेश के विरूद्ध अवर होम संस्था के संचालक ने माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर में रिट पिटीशन दायर किया था। इस रिट पिटीशन में माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर द्वारा अंतरिम आदेश पारित किया गया था, जिसमें याचिकाकर्ता को कलेक्टर बिलासपुर के समक्ष 15 दिवस के भीतर नवीन अभ्यावेदन प्रस्तुत करने एवं कलेक्टर बिलासपुर को उक्त नवीन अभ्यावेदन पर 45 दिन के भीतर निर्णय लिए जाने का आदेश दिया गया था। अंतरिम आदेश में आवश्यकतानुसार संस्था की कार्यप्रणाली की पुनः जांच के भी आदेश दिए गए थे। माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर के द्वारा रिट पिटीशन के परिप्रेक्ष्य में जारी किए गए अंतरित आदेश के पालन में कलेक्टर द्वारा जिला स्तरीय निरीक्षण समिति (जिला बाल संरक्षण इकाई) को संस्था का निरीक्षण कर प्रतिवेदन प्रस्तुत करने हेतु निर्देशित किया गया। जिला स्तरीय निरीक्षण समिति ने कलेक्टर को अपने निरीक्षण प्रतिवेदन में इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि संस्था में निर्धारित पदों की पूर्ति में शासन द्वारा निर्धारित मापदंड व नियम का पालन नहीं किया गया है। संस्था संचालक द्वारा किशोर न्याय अधिनियम 2015 एवं आदर्श नियम 2016 का लगातार उल्लंघन किया जा रहा है। निवासरत बालिकाओं को मीनू चार्ट के अनुसार भोजन नहीं दिया जाने सहित अनियमितता के कई मामलों का उल्लेख जिला स्तरीय निरीक्षण समिति ने अपने प्रतिवेदन में किया है। संस्था संचालक द्वारा रिट पिटीशन के संबंध में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा जारी किए गए अंतरिम आदेश के पालन में भी लापरवाही बरती गई।

संस्था के संचालक ने माननीय उच्च न्यायालय के निर्देश के बावजूद भी कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी बिलासपुर के समक्ष अभ्यावेदन प्रस्तुत नहीं किया, जिसकी पुष्टि भी संस्था संचालक ने कलेक्टर के समक्ष सुनवाई के दौरान की। अवर होम संस्था में रह रही बालिकाओं के हितों के संरक्षण में बरती जा रही लापरवाही, जे.जे. एक्ट के उल्लंघन तथा उच्च अधिकारियों के आदेशों एवं निर्देशों के पालन में लगातार लापरवाही बरतने तथा संस्था की कार्यप्रणाली में सुधार न पाए जाने पर कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी ने जिला बाल कल्याण समिति के फैसले को मान्य करते हुए संस्था में रह रही बालिकाओं को शासकीय बालिका गृह सरकंडा में स्थानांतरित किए जाने का आदेश पारित किया।

क्या है मामला:

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तस्वीरे ndtv से प्राप्त है

मामला बिलासपुर के ‘अपना घर’ संस्था का है, जहां विभिन्न जिलों की 14 HIV संक्रमित बच्चियां रहती हैं। संस्था के लोगों ने अनुदान के बदले रिश्वत देने से मना किया तो सालभर से अधिकारी संस्था के पीछे पड़ गए हैं।बच्चियों को लेकर उनके मन में जरा भी संवेदना नहीं है, वे किसी भी तरह संस्था को बच्चियों से खाली करा देना चाहते हैं। जबकि बच्चियां वहां से जाना ही नहीं चाहतीं।

HIV संक्रमित बच्चियों के साथ बाहर बहुत बुरा बर्ताव होता है। ऐसा बच्चियों का ही कहना है। संस्था में रह रही ज्यादातर बच्चियों के माता-पिता नहीं हैं, ऐसे में इन बच्चियों को किसी परिजन के हवाले कर दिया जाएगा। उसके बाद उन्हें क्या दिक्कत आएगी, इससे किसी को कोई लेना-देना नहीं। बच्चियां जियें या मरें। HIV संक्रमित बच्चियों को बहुत देखभाल की जरूरत पड़ती है। लेकिन सारी चीजों से अधिकारियों को कोई मतलब ही नहीं है।

बच्चियां परिजनों के पास जाना नहीं चाहतीं, पर भ्रष्टाचारी अधिकारी उन्हें किसी भी हालत में भेजकर संस्था को खाली कराना चाहते हैं, ताकि रिश्वत की मनाही से उनके ईगो को जो धक्का लगा है, वह सैटिस्फाइड हो सके। बस।

मामला हाईकोर्ट भी पहुंचा था। हाईकोर्ट ने कलेक्टर को मामला सुलझाने के लिए कहा है, लेकिन कलेक्टर साहब नेताओं की चाकरी बजाने में इतने व्यस्त हैं कि उनके पास HIV पीड़ित बच्चियों की मदद के लिए समय नहीं है। वे न किसी का फोन उठा रहे हैं, न किसी मैसेजेस का जवाब दे रहे।

अभी सुनने में आया है कि रिश्वत मांगने वाले कार्यक्रम अधिकारी सुरेश सिंह कुछ अन्य अधिकारियों और पुलिस के साथ आज संस्था पहुंचे थे। उन्होंने पीड़ित बच्चियों के मामले को देख रहीं अधिवक्ता प्रियंका शुक्ला, संस्था की अधीक्षिका और स्टॉफ के साथ संस्था खाली करने को लेकर जमकर मारपीट की है। संस्था में टूटी चूड़ियाँ और खून के छीटे इसकी गवाही दे रहे हैं। अधिवक्ता प्रियंका शुक्ला को पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया गया है।

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गजब का सिस्टम है। गजब की सरकार और गजब के अधिकारी। पीड़ित पक्ष को ही दोषी साबित करने में जुटे हुए हैं। पीड़ितों की कहीं कोई सुनवाई नहीं हो रही है। अधिकारी से लेकर मंत्री और मुख्यमंत्री तक कोई बच्चियों के साथ खड़ा नज़र नहीं आ रहा है। हर कोई उस ईश्वतखोर अधिकारी के साथ खड़े हैं, जो किसी नेता का रिश्तेदार है। एक के साथ रिश्तेदारी निभाने के चक्कर में ऊपर से नीचे तक सारे लोगों की संवेदनाएं मर चुकी हैं।

बच्चियों ने हर किसी से रहम की गुहार लगाई है, लेकिन किसी ने कोई मदद नहीं की। हर किसी उस रिश्वतखोर अधिकारी की बातें ही सुन और मान रहे हैं। कलेक्टर, विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री किसी को उन बच्चियों पर तरह नहीं आ रहा है। उन्हें तो पता भी नहीं वे किसके गुनाहों की सजा भुगत रहीं है, पर इस सरकारी रवैये से उन्हें जो दर्द हो रहा है, उसे वे कैसे भूल पाएंगी।

संवेदनशील सरकार का ढिंढोरा पीटने वाली छत्तीसगढ़ सरकार और संवेदनशील माननीय मुख्यमंत्री को इस मुद्दे पर ध्यान देना चाहिए। यह बात केवल इन 14 पीड़ित बच्चियों की नहीं है, उस सिस्टम की भी है, जहां अच्छे से चल रही संस्था को केवल रिश्वत न देने के कारण कुछ अधिकारी खत्म करने पर लगे हुए हैं। ऐसे में उन संस्थाओं का मनोबल टूटेगा जो सचमुच में समाज की बेहतरी के लिए काम कर रही हैं। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सच के साथ खड़ी हो और गलती करने वालों पर कार्रवाई करे। नहीं धीरे-धीरे जनता का भरोसा सरकार से उठने लगेगा।।

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