Ekhabri धर्मदर्शन, पूनम ऋतु सेन। बस्तर की आराध्य लोकदेवी माई दंतेश्वरी के प्रति असीम आस्था व प्राचीन परंपरा का पर्याय है बस्तर दशहरा का पर्व। काकतीय नरेश पुरुषोत्तम देव के द्वारा शुरू किया गया यह पर्व लोकआस्था के संगम का प्रतीक है।
कल के पोस्ट में हमने डेरिगडाई के रस्म के बारे में चर्चा की थी, इसी कड़ी में हम आज विश्व प्रसिद्ध पर्व के ह्रदयस्पर्शी कर देने वाले रस्म काछिनगादी के बारे में जानेंगे।
यह रस्म बस्तर दशहरा के निरंतर चलने वाले रस्मों में प्रथम रस्म है। काछिनगादी का अर्थ है काछिन देवी को गद्दी देना। पूर्ण अर्थ में काछिन देवी को ऐसी गद्दी देना जो नुकीले कांटो से बनाई गई हों। यह काछिन दैवी रण देवी भी कहलाती है। कांटो में बैठी यह देवी कांटों भरे जीवन से जीतने का संदेश देती है।
कैसे कराई जाती है यह रस्म
पितृमोक्ष अमावस्या के दिन काछिन गादी पूजा विधि पूर्वक प्रारंभ होती है। यह देवी मिरगानों की कुल देवी मानी जाती है। इस कार्यक्रम जे लिये राजा या राजा का प्रतिनिधि संध्या काल मे धूमधाम से जुलुस निकालते हुए जगदलपुर के पथरागुड़ा मार्ग पर स्थित काछिन गुड़ी पहुँचता है। वर्तमान में यह दन्तेश्वरी मंदिर के पुजारी द्वारा इस कार्यक्रम की अगुवाई की जाती है। इस पूजा में राजा या प्रतिनिधि निर्विघ्न दशहरा के पर्व की समाप्ति की कामना करता है।
माहरा समुदाय की इष्ट देवी काछिन माता से आशीर्वाद लेने के लिए यह रस्म निभाया जाता है। इस गुड़ी में लगभग 9 वर्ष की मिरगान कुँवारी कन्या के ऊपर देवता आने की बातें आंचलिक तौर पर मानी जाती है। इस हृदयस्पर्शी कार्य के लिए प्रति वर्ष एक नई कन्या का चयन किया जाता है जो महार समुदाय की होती है। मान्यता के अनुसार काछिन देवी धन धान्य की वृद्धि एवं रक्षा करती हैं। देवी के आगमन पर कन्या को कांटो से बने झूले पर सुलाया जाता है और पूजा अर्चना कर कई रस्मों को पूरा किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि माता अपने गले से माला उतारकर पुजारी को दे देती है तो यह दशहरा समारोह का स्वीकृति सूचक प्रसाद मिलना समझा जाता है और यह पर्व धूमधाम से प्रारंभ हो जाता है।
बस्तर दशहरा से संबंधित आगामी रस्मों को जानने के लिए Ekhabri.com से जुड़े रहे, हम अपने पाठकों के लिए इस सीरीज के माध्यम से विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे के सभी रस्मों को विस्तार से और रोचक तथ्यों के साथ इसी तरह लेकर आएंगे।
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