राजनीतिक दलों को इंटरनेट मीडिया से चुनाव प्रचार करना आसान नहीं होगा। चुनाव आयोग ने चुनाव के दौरान इंटरनेट मीडिया के अलग-अलग प्लेटफार्मों पर हैशटैग के जरिये होने वाले राजनीतिक प्रचार को चुनावी खर्चों में शामिल करने के संकेत दिए हैं। इनमें गूगल, फेसबुक, टि्वटर और इंस्ट्राग्राम आदि सभी शामिल होंगे। अब तक आयोग की इंटरनेट मीडिया पर ऐसे हैशटैग वाले प्रचार पर कोई निगरानी नहीं है। यह चुनाव आयोग ने संकेत दिए हैं कि इंटरनेट मीडिया के जरिये होने वाले चुनाव प्रचार पर निगरानी बढ़ाई जाएगी। इसके लिए गठित एक उच्चस्तरीय कमेटी की रिपोर्ट मिलने के बाद यह फैसला लिया है। कमेटी ने कहा कि हैशटैग वाले ट्वीट और पोस्ट के लिए इंटरनेट मीडिया को पैसा दिया जाता है। ऐसे में इन ट्वीट और पोस्टों को राजनीतिक दलों के खर्चों में शामिल किया जाए। साथ ही इन पर नजर रखने के लिए आयोग की ओर से बनाई गई मीडिया प्रमाणन और निगरानी समिति (एमसीएमसी) के नियमों के दायरे में लाया जाए। आयोग अभी तक इंटरनेट मीडिया के जरिये अलग-अलग तरीकों से किए जाने वाले प्रचार पर पूरी तरह निगरानी रखने में विफल रहा है, क्योंकि अभी उसके पास कोई तंत्र नहीं है।
आयोग ने यह संकेत ऐसे समय दिया है जब बंगाल, असम सहित पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों का एलान हो चुका है। साथ ही राजनीतिक दल मैदान से लेकर इंटरनेट मीडिया पर प्रचार के लिए उतर चुके हैं। आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक इससे पहले भी कई विशेषज्ञों ने इंटरनेट मीडिया के जरिये होने वाले प्रचार-प्रसार पर निगरानी और बढ़ाने की बात कही थी। लेकिन हाल के चुनावों में वोटिग से ठीक पहले जब चुनाव प्रचार पूरी तरह से थम जाता है, तब इंटरनेट मीडिया के जरिये वोटरों को लुभाने के लिए एक अलग तरह की मुहिम चलाई जाती है। यह चुनाव प्रचार का ही एक हिस्सा होती है, लेकिन अभी इस पर निगरानी नहीं रखी जाती है। कमेटी ने जिला स्तर पर निगरानी रखने के लिए एक एक्सपर्ट टीम के गठन का भी सुझाव दिया है, जो ऐसे प्रचारों पर होने वाले खर्च की जानकारी भी दे सके। आयोग इसे लेकर जल्द ही दिशा-निर्देश जारी कर सकता है।