उत्तराखंड के जोशीमठ में भूधंसाव को लेकर निरंतर चौंकाने वाली जानकारी सामने आ रही है। कुछ दिन पहले वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान ने सेटेलाइट अध्ययन में बताया था कि यहां जमीन खिसकने/धंसने की सालाना दर करीब 85 मिलीमीटर है। इसके बाद इसरो के देहरादून स्थित भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (आईआईआरएस) ने भूधंसाव की सालाना दर 65 से 87 मिलीमीटर बताई थी। अब इसरो के हैदराबाद स्थित नेशनल रिमोट सेंसिग सेंटर (एनआरएससी) ने सेटेलाइट चित्र जारी कर जोशीमठ क्षेत्र में 12 दिन में ही 5.4 सेंटीमीटर (54 मिलीमीटर) जमीन के धंसाव की चौंकाने वाली जानकारी दी है।
पीटीआई के मुताबिक, इसरो के नेशनल रिमोट सेंसिग सेंटर ने दो अंतराल के सेटेलाइट चित्र जारी किए हैं। इनमें अप्रैल से नवंबर, 2022 के मध्य किए गए सेटेलाइट अध्ययन में कहा गया है कि सात माह में जोशीमठ की जमीन में 8.9 सेंटीमीटर (89 मिलीमीटर) का धंसाव पाया गया। इसके बाद 27 दिसंबर, 2022 से आठ जनवरी, 2023 के बीच 12 दिन के सेटेलाइट चित्र जारी किए गए हैं। इस अंतराल में भूधंसाव कई दर पहले से कहीं अधिक 5.4 सेंटीमीटर (54 मिलीमीटर) पाई गई है। हालांकि, यह धंसाव जोशीमठ शहर के मध्य क्षेत्र तक सीमित पाया गया। साथ ही धंसाव का ऊपरी क्षेत्र जोशीमठ-औली रोड पर 2180 मीटर की ऊंचाई पर दर्शाया गया है। भूधंसाव के सेटेलाइट चित्रों में आर्मी हैलीपैड और नरसिह मंदिर के भूक्षेत्रों को प्रमुखता से दर्शाया गया है। यह भूभाग जोशीमठ शहर के मध्य क्षेत्र में ही स्थित हैं।
20 साल में बदल सकता है जोशीमठ का नक्श
यदि जोशीमठ में भूधंसाव की दर 12 दिन के अंतराल में 54 मिलीमीटर ही रही तो आने वाले 20 साल में क्षेत्र का नक्शा ही बदल सकता है। क्योंकि, यदि इसी दर को आधार मानें तो माहभर में ही 135 मिलीमीटर और सालभर में यह आंकड़ा 1620 मिलीमीटर होगा और 20 साल में 32 हजार 400 मिलीमीटर यानी 3240 सेंटीमीटर होगा। मीटर में यह आंकड़ा 324 मीटर पहुंच जाएगा। हालांकि, यदि विज्ञानियों की संस्तुतियों के आधार पर काम किया जाए तो भूधंसाव की रफ्तार को थामा जा सकता है। इसके तहत क्षेत्र के ड्रेनेज सिस्टम को ठीक करना होगा, निर्माण को नियंत्रित व नियोजित करना होगा और अलकनंदा नदी की तरफ से हो रहे कटाव को रोकने के उपाय करने होंगे।
राज्य में कार्यरत एजेंसियों को इसरो के चित्रों की जानकारी नहीं
इसरो के नेशनल रिमोट सेंसिग सेंटर की तरफ से जारी भूधंसाव के ताजा सेटेलाइट चित्रों की जानकारी ही नहीं है। यहां तक कि देहरादून में स्थित इसरो के ही भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान ने भी ऐसे चित्र जारी किए जाने पर अनभिज्ञता जताई। वहीं, राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण व उत्तराखंड अंतरिक्ष उपयोग केंद्र ने भी कहा कि उनके साथ जोशीमठ के सेटेलाइट चित्र साझा नहीं किए गए हैं। साथ ही इस तरह की जानकारी रिमोट सेंसिग सेंटर, हैदराबाद व इसरो की वेबसाइट पर भी नहीं पाए गए हैं। इसरो के जनसंपर्क विभाग ने भी आधिकारिक रूप से ऐसे किसी चित्र को जारी किए जाने की पुष्टि नहीं की