रायपुर, पूनम ऋतु सेन। हिंदी दिवस या राजभाषा दिवस 14 सितंबर के दिन मनाया जाता है। ऐसे दौर में जब हिंदी की स्वीकार्यता के ऊपर सवाल खड़े किये जाते हैं तब इसके इतिहास,वर्तमान और भविष्य के बारे में जानना और जरुरी हो जाता है।
आज इस लेख में हम इसी विषय के बारे में बात करने वाले हैं।
कैसे बनी हिंदी हमारी राजभाषा?
हमारा भारत देश जब आज़ाद हुआ और संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न गणराज्य घोषित हुआ तब राष्ट्रीय चिन्ह, राष्ट्रीय गान, राष्ट्रीय ध्वज अपनाये जाने के बाद ‘कौन सी भाषा को राजभाषा का दर्जा दें’ यह सवाल उठने लगा।
भारतवर्ष में अनेक भाषाएं और बोलियां हैं। हर देश में शासन चलाने के लिए एक भाषा की आवश्यकता होती है वही उस देश की राजभाषा कहलाती है। स्वतंत्रता के बाद भारत में भी राजकाज चलाने के लिए राजभाषा की आवश्यकता हुई, क्योंकि भारत को अंग्रेज़ो से आज़ादी मिले कुछ वर्ष ही हुए थे लेकिन अंग्रेज़ी से उन्हें आज़ादी नहीं मिली थी।
इस विषय पर काफी विचार विमर्श के बाद राजभाषा समिति ने अपना प्रतिवेदन सौंपा और 14 सितंबर 1953 के दिन हिंदी भाषा को राजभाषा के रूप में मान्यता दी गयी तब से प्रत्येक वर्ष इस दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
हिंदी तब और अब
हिंदी भारत की न तो सबसे पुरानी भाषा है और न ही सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा थी जब इसे राजभाषा का दर्जा दिया गया। वास्तव में यह उस समय व्यापक रूप में बोली जाने वाली भाषा थी जिसका प्रभाव क्षेत्र भी व्यापक था और हिंदी भाषा ने स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में भी व्यापक भूमिका निभाई थी, इन्ही विशेषताओं ने इसे राजभाषा का दर्जा दिया।
आज के आंकड़ों के ऊपर नज़र डाले तब इसके स्वीकार करने वाली जनसंख्या में दशक दर दशक वृद्धि देखने मिलती है। अंग्रेज़ी, स्पैनिश, मंदारिन( चीनियों का एक भाषा समूह) के बाद हिंदी चौथी भाषा है जो विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाती है। 2011 की जनगणना की बात करें तब 125 करोड़ में से 53 करोड़ लोग हिंदी को मातृभाषा मानते थे, जिसका प्रतिशत लगभग 43.63 है। हमारे राज्य छत्तीसगढ़ में भी लगभग 83% जनसंख्या द्वारा हिंदी बोली जाती है।
हिंदी और उसकी वास्तविकता
जब हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया तब अंग्रेज़ी को कामचलाऊ रूप से 10 वर्ष के लिए प्रयोग में रखा गया और हिंदी को संस्कृतनिष्ठ के रूप में मान्यता दी गयी। लेकिन अंग्रेज़ी पसन्द लोगों औऱ हिंदी विरोधी लोगों ने हिंदी विरोधी आंदोलन का समर्थन किया जिससे हिंदी भाषा अब हंसी मज़ाक के लिए अधिक बोली जाती है, आप सभी ने भी देखा होगा कि बड़े से बड़े लोग भी शुद्ध हिंदी का उपयोग हास परिहास के लिए करने लगे है, और उन्हें इसी हिन्दोस्तान में रहते हुए उसी राजभाषा का अपमान करने में शर्म भी नहीं आती।
फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलना जैसे बुद्धिमान होने की निशानी बन चुकी है और हिंदी बोलना पिछड़ेपन की।
क्या हिंदी संपर्क भाषा से जनभाषा के रूप में स्वीकार्य हो पाएगी?
हम जिस जगह में रहते हैं उसके हिसाब से खाते पीते पहनते हैं, आप जिस देश मे जायेंगे उस देश की भाषा बोलेंगे। अधिक से अधिक बोली या भाषा को जानना अच्छी बात है लेकिन जानना-समझना और जान के न बोलना दुःखद बात है। सत्य तो यह है कि हिंदी केवल राजभाषा तक सीमित नहीं है यह राष्ट्र के कंठ से उदघोष होने वाली भाषा है।