- ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए पाटन नगर पंचायत के सिर पर सजा नम्बर वन का ताज
- स्वच्छ महोत्सव में 25 हजार से कम जनसंख्या वाले नगरीय निकायों में सबसे साफ शहर पाटन,राष्ट्रीय स्तर पर मिला क्लीनेस्ट सिटी का खिताब
- पाटन को सबसे साफ शहर बनाने में स्व सहायता समूह की दीदियों की रही महत्वपूर्ण भूमिका
- कचरे का सही प्रबंधन कर हर माह 80 हजार से एक लाख रुपए की आमदनी
दुर्ग। आज जब से खबर आई है कि पाटन नगर पंचायत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के लिए प्रथम पायदान पर था।अब सवाल है कि एका- एक ऐसा क्या हुआ जो पाटन नंबर एक के पायदान आगया। कौन कौन है इसके पीछे? कंहा है पाटन?
तो जवाब है-
छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले का छोटा सा शहर पाटन, शहर छोटा है मगर इस शहर के नाम बड़े कारनामे दर्ज हैं। प्रदेश के मुखिया इसी शहर से आते हैं।मगर आज इस शहर ने एक और बड़ा कारनामा कर दिखाया है। स्वच्छ महोत्सव 2020 में पाटन को 25 हजार से कम जनसंख्या वाली केटेगरी में देश में सबसे साफ शहर होने का खिताब मिला है। बड़ी बात ये है कि स्वच्छ सर्वेक्षण अपनी तरह का विश्व के में सबसे बड़ा सर्वेक्षण है जिसमें 4242 से अधिक शहरों में स्वतंत्र एजेंसी द्वारा सर्वे किया गया।जि।छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले का छोटा सा शहर पाटन, शहर छोटा है मगर इस शहर के नाम बड़े कारनामे दर्ज हैं।
प्रदेश के मुखिया इसी शहर से आते हैं।मगर आज इस शहर ने एक और बड़ा कारनामा कर दिखाया है। स्वच्छ महोत्सव 2020 में पाटन को 25 हजार से कम जनसंख्या वाली केटेगरी में देश में सबसे साफ शहर होने का खिताब मिला है। बड़ी बात ये है कि स्वच्छ सर्वेक्षण अपनी तरह का विश्व के में सबसे बड़ा सर्वेक्षण है जिसमें 4242 से अधिक शहरों में स्वतंत्र एजेंसी द्वारा सर्वे किया गया।जिसमें देश भर में गार्बेज फ्री शहर और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के पूरे मापदंडों पर खरा उतरते हुए पाटन नगर पंचायत ने ये उपलब्धि हासिल की है। उपलब्धि के पीछे निःसंदेह प्रदेश के मुखिया का सतत मार्गदर्शन और प्रशासन की कर्तव्यपरायणता तो है ही। मगर खास बात ये है कि ये शहर की महिलाओं के जज्बे का ईनाम भी है।
नगर पंचायत के सीएमओ जितेंद्र कुशवाहा ने बताया कि स्व सहायता समूह की महिलाओं की बदौलत हमनें ये उपलब्धि हासिल की है। राज्य सरकार का मार्गदर्शन मिला और कामयाबी की नींव रखी हमारी बहनों ने।कुछ अलग कर दिखाने की उत्कंठा ने आज ये सफलता दी है।समें देश भर में गार्बेज फ्री शहर और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के पूरे मापदंडों पर खरा उतरते हुए पाटन नगर पंचायत ने ये उपलब्धि हासिल की है। उपलब्धि के पीछे निःसंदेह प्रदेश के मुखिया का सतत मार्गदर्शन और प्रशासन की कर्तव्यपरायणता तो है ही। मगर खास बात ये है कि ये शहर की महिलाओं के जज्बे का ईनाम भी है।नगर पंचायत के सीएमओ जितेंद्र कुशवाहा ने बताया कि स्व सहायता समूह की महिलाओं की बदौलत हमनें ये उपलब्धि हासिल की है। राज्य सरकार का मार्गदर्शन मिला और कामयाबी की नींव रखी हमारी बहनों ने।कुछ अलग कर दिखाने की उत्कंठा ने आज ये सफलता दी है।
पाटन मॉडल में क्या है खास जिसने बनाया इन्हें नम्बर वन-
पहला उद्देश्य निश्चित रूप से एक साफ सुथरा शहर जहां नागरिकों को साफ परिवेश मिले।कचरा मुक्त होने के साथ साथ कचरे को कंचन में बदलने की चाह और विशेषज्ञता। पाटन को कचरा मुक्त बनाने की जिम्मेदारी मिली स्व सहायता समूह की महिलाओं को।इनका पहला काम था डोर टू डोर जाकर कचरा इकट्ठा करना,दूसरा कचरे का सेग्रिगेशन और तीसरा इस कचरे से कमाई कर आत्मनिर्भर बनना। डोर टू डोर जाकर कचरा इकट्ठा करना आसान था मगर मुश्किल था था कचरे को अलग अलग कर इसका सही इस्तेमाल। घरों से आम तौर पर कचरे के रूप में निकलने वाली चीजें खाद्य सामग्री, फल, सब्जी, पेपर, प्लास्टिक होती है। सूखा और गीला कचरा आपस में मिल जाए या कचरे के कार्बनिक और अकार्बनिक तत्व आपस में क्रिया कर उसकी उपयोगिता नष्ट कर देते हैं इसके बाद कचरे का लिमिटेड उपयोग जैसे खाद निर्माण आदि हो सकता है। इसलिए सबसे शुरुआती कदम इन महिलाओं ने यह उठाया कि नागरिकों को घरों में ही सूखा और गीला कचरा अलग अलग रखने की प्रेरणा दी।घरों से ही सेग्रिगेटेड कचरा मिल जाने से मेहनत तो कम लगी ही साथ ही उसके इस्तेमाल का एक नया आयाम भी खुला।सार्वजनिक स्थानों पर फ्लोटिंग पॉपुलेशन को जागरूक करने के उपाय भी किए गए।उनको प्रेरणा दी गई कि कचरा केवल लिटर बीन में डालें वो भी सूखा और गीला अलग अलग इसकी निगरानी भी लगातार जारी रही । शहर में माॅडल टायलेट विकसित किये गये और लोगों को इस्तेमाल के लिए प्रेरित किया गया।इसकी बदौलत ओडीएफ डबल प्लस और गार्बेज फ्री अर्थात कचरा मुक्त शहर में ट्रिपल स्टार मिला।
मंदिरों से मिले फूल से बनाई अगरबत्तियां,गोबर से दीप और मूर्तियां-
पाटन में हर दिन करीब डेढ़ टन कचरा निकलता है।जिसमें हर तरह की चीजें जैसे खाद्य सामग्री, कागज ,प्लास्टिक आदि।इन महिलाओं ने नए कॉन्सेप्ट पर काम किया एक तरफ गीले कचरे सिर्फ खाद बनाने की लिमिटेशन खत्म की और दूसरी तरफ आमदनी का जरिया पैदा किया। फूलों से अगरबत्ती, गोबर से दीप और मूर्तियां बनायीं सूखे कचरे को खुले बाजार में बेचा।जिससे उन्हें हर माह 1 लाख तक कि आमदनी होने लगी। नगर पंचायत के सीएमओ कुशवाहा नेबताया कि सिर्फ फूलों से अगरबत्ती बनाकर ये महिलाएं 50 हजार प्रतिमाह कमा लेती हैं।
क्या कहती है समूह की महिलाएं-
कंचन में बदलने के काम में लगी स्व सहायता समूह की महिलाएं यह अवार्ड पाकर खुशी और गर्व से झूम उठी हैं। समूह की लता मंडलेश, रामकली, मंडलेश, एरिच कुर्रे, निर्मला, कंचन बताती हैं कि प्रशासन द्वारा उनको सतत मार्गदर्शन मिला साथ ही नागरिकों का सहयोग। राष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश और पाटन शहर को पहचान दिलाने में उनका भी योगदान है ये उनके लिए गर्व की बात है।