इससे ज्यादा और क्या आत्मनिर्भर होगा भारत, इन्हें रोटी की तलब ने शहर का रास्ता दिखाया था। उसी रोटी के संकट से अब घर वापसी हो रही है, उड़ीसा के रेमुना स्थित एक फैक्ट्री में काम करने वाला दीपक कुँवर मध्यप्रदेश के सीधी जिले के ग्राम बलियार का रहने वाला है। मुल्कबंदी ने रोज़गार छीन लिया, जब तक रोटी खरीदने के पैसे थे तब तक उम्मीद ज़िंदा थी। अब जेब खाली है, रास्ते में मिलने वाली मदद पेट और परिवार का सहारा है। दीपक अपने 80 साल के अधेड़ पिता, पत्नी और बच्चों को लेकर अर्से बाद साइकिल से गाँव लौट रहा है। इस तस्वीर में दीपक अपने पिता रामलाल कुँवर के अलावा 3 साल की बिटिया मानसी के साथ सफ़र पर है।
[उड़ीसा के रेमुना से सीधी [एमपी] की दुरी करीब 841 किलोमीटर है। ]
इसी आपदा ने कइयों को पब्लिसिटी का अवसर भी दिया। नाम कमाने की जुगत में लगे कुछ नकारे निकम्मे लोग इनकी मजबूरियों पर टिकटोक बनाते रहे । सब अवसर का खेल है, बस ईश्वर ये खेल उन खिलाड़ियों के परिवार से न खेले ।
1947 में आजाद हुए देश की आज ऐसी तस्वीर एक विडंबना ही कही जा सकती है।