राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बनाम उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच की लड़ाई में ऐक्शन, ड्रामा, इमोशंस, रोमांच और सस्पेंस का खेल जारी है। हालांकि यह कांग्रेस की आतंरिक लड़ाई है, लेकिन भाजपा पूरे घटनाक्रम पर सीधे नजर रखे है। पायलट भाजपा के संपर्क में होने की अटकलों को खारिज कर चुके हैं। वहीं भाजपा भी सियासी ड्रामे में खुद की किसी भी भूमिका से इनकार किया है। मगर राजनीति अगर इतनी ही आसान होती जितनी दिखती है। यह भी ठीक है कि भाजपा-पायलट को हसरत भरी निगाहों से देख रही है। इसकी वजह है उनका जनाधार। वह अगर पायलट भाजपा के साथ आए तो उसे कम कम से कम 49 सीटों पर फायदा दिला सकते हैं।
हाल के सालों में राजस्थान की सियासत में दो विपरीत ध्रुव कहे जाने वाले गुर्जर और मीणा समुदाय की दूरियां बहुत हद तक सचिन पायलट के करिश्मे के कारण पट गईं। अतीत में आरक्षण के मुद्दे पर हुईं हिंसक झड़पों में दोनों ही समुदाय के कई लोगों की जान जा चुकी है। इसके बाद इनमें कटुता इस कदर बढ़ी कि दोनों के साथ आने के बारे में कोई सोच तक नहीं सकता था। लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में पायलट ने इसे कर दिखाया।
2004 में पहली बार सांसद बनने के साथ ही पायलट ने गुर्जर-मीणा एकता की मुहिम चलाई थी, ताबड़तोड़ एकता रैलियां की थीं। उन्हीं की कोशिशों का नतीजा था कि एक दूसरे की कट्टर विरोधी माने जाने वाली दोनों जातियों ने 2018 में कांग्रेस की ऐसी झोली भरी कि बीजेपी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा। गहलोत के खिलाफ आर-पार की राजनीतिक लड़ाई में पायलट के साथ कम से कम 5 मीणा विधायक हैं जो इस समुदाय में उनकी स्वीकार्यता की गवाही देता है।
राजस्थान की 49 सीटों पर पायलट का सीधा असर
राजस्थान की राजनीति में गुर्जर और मीणा की अहम भूमिका है। एक अनुमान के मुताबिक राज्य की आबादी में 9 प्रतिशत गुर्जर तो 7 से 8 प्रतिशत मीणा हैं। दोनों को साथ मिलाकर देखें तो पूर्वी राजस्थान की 49 विधानसभा सीटों पर उनका दबदबा है। दौसा, सवाई माधोपुर, भरतपुर, जयपुर ग्रामीण और करौली में दोनों ही जातियों की प्रभावशाली मौजूदगी है। दोनों को साथ लाने के लिए सचिन पायलट ने कोई कसर नहीं छोड़ी। वह खुद गुर्जर हैं।
पायलट ने बदल दिए थे समीकरण
पायलट सूबे की सियासत के परंपरागत जातिगत समीकरण को ध्वस्त कर नई इबारत लिखने में कामयाब हुए। यही वजह थी कि पिछले विधानसभा चुनाव में गुर्जर और मीणा का गढ़ कहे जाने वाले पूर्वी राजस्थान में भाजपा की हवा निकल गई। यहां की 49 में से 42 सीटों पर कांग्रेस के कब्जे में आ गई और भाजपा सत्ता से बाहर होना पड़ा।
ताक में बैठी है भाजपा
पायलट की लोकप्रियता सिर्फ उनके समुदाय गुर्जर या फिर मीणा तक में ही सीमित नहीं है। सभी वर्ग और समुदायों में उनकी ठीक-ठाक पहुंच है। यही वजह है कि राजस्थान में कांग्रेस के भीतर चल रही इस सियासी ड्रामे के बीच भाजपा ताक में बैठी है। भले ही भाजपा नेता मौजूदा राजनीतिक उठापटक में पार्टी की किसी भी भूमिका से इनकार कर रहे हैं, लेकिन उन्हें भी पायलट की अहमियत का बखूबी अंदाजा है। पायलट भाजपा के लिए सत्ता की सीढ़ी बन सकती हैं।