जान हापकिन्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार एक नए आर्टीफिशियल इंटेलीजेंसबेस्ड रुख को अपनाने से इस बात का पता लगाया जा सकता है कि एक मरीज कब कार्डिएक अरेस्ट (हृदयगति रुकने) से मर सकता है। नेचर कार्डियोवेस्कुलर जर्नल में प्रकाशित शोध में बताया गया है कि दिल के मरीजों की तस्वीरों से उनके नैदानिक फैसलों का समाधान हो सकता है। इससे जानलेवा कार्डिएक एरिथिमियास के मरीजों को अचानक मौत से बचाया जा सकता है। इस बीमारी में मरीज की अवस्था बेहद घातक होती है।
बायोमेडिकल इंजीनियरिंग और मेडिसिन की प्रोफेसर नटालिया त्राएनोवा ने बताया कि कार्डिएक एरिथिमियास से विश्व में बीस फीसद लोगों की मौत होती है। हमें इस बात की भी थोड़ी जानकारी है कि ऐसा क्यों हो रहा है और हम यह पहचान करना भी जानता है कि खतरा किसे हैै। कई ऐसे मरीज हो सकते हैैं जिन्हें खतरा कम हो लेकिन उनकी मौत कार्डिएक अरेस्ट से हो जाती है। कई भारी खतरे वाले मरीज सही इलाज मिलने से लंबा जी लेते हैैं। इस एल्गोरिथम को निश्चित करके ऐसी मौतों को कम किया जा सकता है। इससे डाक्टरों को पता चलेगा कि मरीज पर कब यह खतरा आने वाला है। इस बात का गहन शोध करने वाली तकनीक को सर्वाइवल स्टडी आफ कार्डिएक एरिथिमियास रिस्क (एसएससीएआर) कहते हैैं। जांच दल ने एक न्यूरल नेटवर्क बनाया है, जो दस सालों से ऐसे मरीजों का अध्ययन कर आंकड़े एकत्र कर रहा है। इस आधार पर उनके 22 कारक तय किए गए हैैं, जिसमेें मरीज की उम्र, वजन, नस्ल और दवा का प्रिस्क्रिप्शन शामिल है।