केन्या सरकार ने भारतीय कौओं के खिलाफ जंग छेड़ दी है। केन्या वाइल्डलाइफ सर्विस के मुताबिक़ ये ‘इंडियन हाउस क्रो’ विदेशी पक्षी हैं और पिछले कई दशकों से वहां रहने वाले लोगों को परेशान कर रहे हैं। केन्या वाइल्डलाइफ सर्विस ने साल 2024 के अंत तक तटीय इलाके से 10 लाख कौओं को खत्म करने का एलान किया है। ये काले कौवे भारतीय मूल के बताए जा रहे हैं। माना जाता है कि 1940 के आसपास ये पूर्वी अफ्रीका में आ पहुंचे थे। तब से इनकी संख्या काफी बढ़ गई है और ये आक्रामक होते जा रहे हैं।
केन्या सरकार का कहना है कि इन विदेशी कौओं की वजह से केन्या के असली पक्षियों की संख्या कम हो गई है। इनमें धारीदार बबूल पंछी (स्केली बब्लर्स), सफेद काले कौवे (पाइड क्रोज़), चूहे के रंग की सूरजपक्षी (माउस-कलर्ड सनबर्ड), बीनने वाले पंछी (वीवर बर्ड्स), छोटे चटख रंग के पंछी (कॉमन वैक्सबिल्स) और पानी के पास रहने वाले पंछी भी शामिल हैं।
कौओं को सीलोन कौवा, कोलंबो कौवा या ग्रे नेक्ड कौओं के नाम से भी जाना जाता है। ये कौवा न तो बहुत बड़ा है और न ही बहुत छोटा। इसकी लंबाई करीब 40 सेंटीमीटर (16 इंच) होती है। काले गरुड़ से ये थोड़ा छोटा और मांस खाने वाले गरुड़ से दुबला होता है।
इसकी खासियत है इसका रंग- सिर, गला और सीना काला चमकता हुआ, गर्दन और सीने का निचला हिस्सा हल्का भूरा होता है। पंख, पूंछ और पैर काले होते हैं। हालांकि, ये रंग थोड़े बहुत अलग भी हो सकते हैं, ये इस बात पर निर्भर करता है कि वो कहां रहता है। इसकी चोंच की मोटाई और पंखों के रंग में अलग-अलग इलाकों के हिसाब से थोड़ा बहुत फर्क हो सकता है।
ये कोवे मुख्य रूप से दक्षिण एशिया में पाए जाते हैं। ये मूल रूप से नेपाल, बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, मालदीव्स, दक्षिणी म्यांमार, दक्षिणी थाईलैंड और ईरान के दक्षिणी तटीय इलाकों में पाए जाते हैं। लगभग 1897 के आसपास जहाजों के जरिए इन्हें पूर्वी अफ्रीका (ज़ांजीबार के आसपास) और पोर्ट सूडान ले जाया गया था।
जहाजों से ही ये ऑस्ट्रेलिया भी पहुंचे थे, लेकिन वहां से अब इनका खात्मा कर दिया गया। हाल ही में, ये यूरोप भी पहुंच गए हैं और 1998 से नीदरलैंड के हार्बर टाउन हुक ऑफ हॉलैंड में रह रहे हैं। अमेरिका के फ्लोरिडा में भी इन पक्षियो को देखा गया है। यमन के सोकोत्रा द्वीप पर साल 2009 तक ये कौवे रहते थे, लेकिन वहां के खास पक्षियों को नुकसान न पहुंचे, इसलिए कौओं को पूरी तरह से खत्म कर दिया गया। ये अक्सर गांव से लेकर बड़े शहरों तक, हर जगह इंसानों के आस-पास ही रहते हैं। सिंगापुर में तो 2001 में हर वर्ग किमी में 190 कौवे हुआ करते थे। वहां अब इनकी संख्या कम करने की कोशिश की जा रही है।
केन्या में पक्षी विशेषज्ञ कोलिन जैक्सन का कहना है कि इन भारतीय कौओं की वजह से केन्या के समुद्री इलाकों में छोटे, स्थानीय पक्षियों की संख्या बहुत कम हो गई है। ये भारतीय कौवे छोटे पक्षियों के घोंसले उजाड़ देते हैं। फिर उनके अंडे और चूजों को खा जाते हैं।
जब जंगल के असली पक्षी कम हो जाते हैं, तो पूरा वातावरण खराब हो जाता है। कीड़े-मकोड़े और दूसरी छोटी जीव जंतु बहुत ज्यादा बढ़ जाते हैं, जिससे एक के बाद एक परेशानी खड़ी हो जाती है। इन कौओं का असर सिर्फ उन्हीं पक्षियों पर नहीं पड़ता, जिन्हें वो खाते हैं, बल्कि पूरे वातावरण को नुकसान पहुंचाता है।