नई दिल्ली-किसानों के प्रदर्शन के कारण दिल्ली के बॉर्डर इलाके में इंटरनेट सेवा बंद किए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट में दाखिल लेटर पिटिशन में कहा गया है कि तुरंत इंटरनेट सेवा बहाल की जाए। लेटर पिटिशन में 140 वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि इंटरनेट को सस्पेंड किया जाना कानून की नजर में गलत है। किसान जहां बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे हैं, वहां इंटरनेट सस्पेंड करने का केंद्र सरकार का फैसला अधिकार का दुरुपयोग है। ये अनुच्छेद-19 (1) ए का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट से कहा गया है कि मामले में संज्ञान लिया जाए। लेटर पिटिशन में अनुराधा भसीन बनाम केंद्र सरकार के मामले में दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र भी किया गया है। इस फैसले में कहा गया था कि इंटरनेट की पहुंच संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत मिले मौलिक अधिकार में शामिल है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि जब मैजिस्ट्रेट इंटरनेट सस्पेंड करने का आदेश जारी करें तो वाजिब हो यानी संतुलन को देखना जरूरी है। याचिका में कहा गया है कि लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाया जा रहा है और अगर हम मूक दर्शक बने रहे तो इतिहास हमें माफ नहीं करेगा। याचिका में गुहार लगाई गई है कि सिंघु बॉर्डर, गाजीपुर बॉर्डर और टिकरी बॉर्डर पर इंटरनेट सेवा बहाल की जाए। याचिका में कहा गया है कि प्रत्येक बॉर्डर पर लोहे के 2,000 कीलें लगाई गई हैं। लोहे और सीमेंट के बैरिकेड्स लगाए गए हैं। किसानों को मूलभूत अधिकार से वंचित किया जा रहा है और ये अनुच्छेद-21 के तहत मिले जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। कई मीडिया प्रदर्शन करने वाले किसानों को आतंकी कहकर संबोधित कर रहा है। इस तरह से देश के तानेबाने को नुकासन हो रहा है और इस अन्याय को रोकने के लिए निर्देश जारी किया जाए। याचिका में यह भी कहा गया है कि कुछ न्यूज चैनल की ओर से गलत खबरें फैलाई जा रही हैं, नफरत वाले न्यूज दिखाया जा रहा है और प्रोपगैंडा किया जा रहा है। समुदाय विशेष के खिलाफ सोशल नेटवर्क साइट्स के जरिये नफरत वाले कंटेंट फैलाए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि लाल किले पर कुछ शरारती तत्वों ने अराजकता फैलाई थी, लेकिन समुदाय विशेष पर इसके लिए दोषारोपण किया जा रहा है। ये समाज के लिए खतरा है।