प्रेम में बडी ताकत होती है। यही प्रेम की ताकत नक्सलियों के लिए मुसीबत बन गई है तो नक्सलियों के बीच बन रहे प्रेम संबंध उन्हें नया संसार बसाने के सपने को साकार करने का अवसर प्रदान कर रहा है। हालिया कुछ आत्मसमर्पण के मामले इसी ओर इशारा कर रहे हैं कि बंदूक, बारुद और हिंसा के बीच नक्सलियों में भी प्रेम पनप रहा है। यही प्रेम उन्हें हिंसा की राह छोडकर गृहस्थी को ओर आने के लिए प्रेरित कर रहा है। यही वजह है कि पिछले एक साल में दर्जनभर लाखों रुपये के नक्सली प्रेमी जोडों ने हिंसा को त्याग कर सुरक्षा बलों के समक्ष न केवल आत्मसमर्पण कर दिया, बल्कि गृहस्थी भी बसा ली है।
दरअसल नक्सल संगठन में जब किसी के बीच प्रेम संबंध होता है तो नक्सली नेता उनका विधिवत विवाह करवा देते हैं, ताकि उनके संगठन में बगावत न हो और उनकी गतिविधियां सुचारू रूप से चलती रहे। नक्सली प्रेमी जोडों का विवाह बंदूक की शपथ लेकर होता है, पर बच्चे पैदा न हों इसके लिए पुरूषों की नसबंदी करा दी जाती है। हालांकि पुलिस ने आत्मसमर्पण कर चुके कई नक्सलियों का रिवर्स वसेक्टौमी ऑपरेशन कराया गया। अब उनके बच्चे हैं और अपने परिवारों के साथ वह खुश हैं।
दो दिन पहले एक प्रेमी जोड़ा जंगल से भागकर पुलिस की शरण में पहुंचा है। 27 अगस्त को दंतेवाड़ा जिले में इस प्रेमी जोड़े हरदेश लेकाम और आसमती ने आत्मसमर्पण कर दिया। बस्तर जिले के पीड़ियाकोट गांव निवासी हरदेश लेकाम ने बताया कि नक्सली के बीच ही उसे आसमती प्रेम हो गया। बाद नक्सली नेताओं की सहमति से दोनों ने विवाह कर लिया। इसके बाद उसकी पत्नी आसमती गर्भवती हो गई। जब यह बात नक्सली नेताओं को पता चली तो उन्होंने उसका गर्भपात कराने को कहा। इसके लिए उनलोगों ने आसमती जबरन दवा भी दी, लेकिन सौभाग्य से गर्भपात नहीं हुआ। इसके बाद हमने नक्सलवाद छोड़कर होने वाले बच्चे का भविष्य बनाने की ठानी।
इससे पहले 18 अगस्त 2014 को पूर्वी बस्तर डिवीजन मिलिट्री कंपनी के कमांडर संपत उर्फ सुट्टे ने प्रेम के लिए बंदूक छोड दिया था। संपत को संगठन में रहते हुए ही प्यार हो गया था। जिससे प्यार हुआ वह जंगल में नक्सलियों का इलाज करती थी। उन्हें जंगल से भागने का मौका तलाशने में करीब छह साल लग गए। इसी तरह योजनाथ माड़ा और आयते को भी नक्सलियों के बीच ही रहते हुए प्यार हुआ। दोनों ने चुपचाप भाग जाने का फैसला किया। पहले मौका आयते को मिला। वह भागकर तोंगपाल पहुंची और अगस्त 2018 को थाने में आत्मसमर्पण कर दिया। छह महीने बाद माड़ा जंगल से भाग आया। आत्मसमर्पण करने के बाद माड़ा डीआरजी में भर्ती हो गया और दंतेवाड़ा पुलिसलाइन में रहने लगा, जबकि आयते तोंगपाल में रह रही थी। दोनों की प्रेम कथा तब सामने आई जब दंतेवाड़ा में मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना के तहत सामूहिक शादी में माड़ा ने आयते से शादी की।
बीजापुर जिले के चेरकंटी गांव के गोपी मड़ियामी उर्फ मंगल ने इसी साल 20 मई को आत्मसमर्पण किया था। गोपी को गंगालूर एरिया कमेटी में 15 साल तक सक्रिय नक्सली अभियान का हिस्सा रही महिला कमांडर भारती उर्फ रामे से प्यार हो गया। जगरगुंडा एरिया कमेटी के कमांडर बदरन्ना ने चिंतलनार दलम की लतक्का से विवाह किया और कोंटा में आत्मसमर्पण कर दिया। केशकाल डिवीजनल कमेटी के कमांडर केसन्ना ने सुनीता से शादी की और हिंसा का रास्ता हमेशा के लिए छोड दिया।
बासागुड़ा के डिप्टी कमांडर जोगन्ना ने चंद्रक्का से और मद्देड़ के डिप्टी कमांडर अशोकन्ना ने जयकन्ना से प्रेम में नक्सवाद को भुला दिया। दक्षिण बस्तर स्पेशल जोनल कमेटी के लछन्ना और मद्देड़ के एरिया कमांडर रामाराव ने भी प्रेम विवाह के बाद हिंसा छोड दी।
दंतेवाड़ा पुलिस ने करीब छह महीने पहले प्रेमपत्र को नक्सलवाद के खिलाफ हथियार बनाकर सफलता पाई थी। दंतेवाड़ा एसपी के अनुसार नक्सली लक्ष्मण ने आत्मसमर्पण किया था पर उसकी प्रेमिका जयमति जंगल में रह गई थी। लक्ष्मण का पत्र किसी खास सूत्र के माध्यम से जयमति तक पहुंचाया गया। इसके बाद जयमति का जवाब आया कि वह निकलना तो चाहती है पर नक्सलियों ने पाबंदी लगा रखी है। पत्र में उसने दिन और स्थान बताया जहां से पुलिस उसे ला सकती थी। इसके बाद पुलिस गई और जयमति को ले आई।