
ग्रामीण इलाकों में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने की केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी योजना जल जीवन मिशन को अंतरराष्ट्रीय पहचान और सराहना मिली है। 2019 में अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर माइकल क्रेमर ने जल जीवन मिशन का महत्व रेखांकित करते हुए यह निष्कर्ष निकाला है कि इसके जरिये बाल मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है। क्रेमर के शोधपत्र के अनुसार जल जीवन मिशन पर सही तरह अमल से हर साल पांच साल तक के 1.36 लाख बच्चों की जान बचाई जा सकती है। जल जीवन मिशन का लक्ष्य 2024 तक ग्रामीण इलाकों में सभी घरों को पर्याप्त और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराना है। 2019 में जब इस मिशन की शुरुआत की गई थी तब देश की लगभग आधी ग्रामीण आबादी स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता से वंचित थी।
माइकल क्रेमर और उनकी टीम ने 15 रैंडम कंट्रोल्ड ट्रायल्स के आधार पर यह निष्कर्ष व्यक्त किया है कि वाटर ट्रीटमेंट डायरिया पर अंकुश लगाने और बाल मृत्यु दर में कमी लाने के लिए सबसे किफायती तरीका है। पांच साल तक के बच्चों की असमय मृत्यु के अनेक कारणों में दूषित पेयजल प्रमुख है। क्रेमर के शोध-विश्लेषण का निष्कर्ष है कि वाटर ट्रीटमेंट इससे बचाव का सबसे अच्छा तरीका है। पानी की गुणवत्ता सुधारने के लिए घरों तक पाइप लाइन के जरिये पानी पहुंचना अहम कदम है, हालांकि यह जरूरी है कि यह दूषित तत्वों से मुक्त हो। ट्रीटमेंट पर निगरानी की जरूरत है क्योंकि महाराष्ट्र में 2019 में किए गए एक शोध में यह सामने आया था कि पाइप्ड वाटर में भी 37 प्रतिशत तक दूषित तत्व पाए गए थे।
क्रेमर के शोध में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में स्वच्छ पेयजल से आने वाली कमी का आकलन करने के लिए एक फार्मूले का सहारा लिया गया है, जो हर साल होने वाली ऐसी मौतों और स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता वाले घरों की अनुमानित संख्या पर आधारित है। यह माना गया है कि दूषित पेयजल इस्तेमाल करने वाले घरों में बाल मृत्यु दर स्वच्छ पेय जल वाले घरों के मुकाबले 25 प्रतिशत ज्यादा होती है। क्रेमर को दो अन्य अर्थशास्त्रियों के साथ वैश्विक गरीबी दूर करने के लिए वैकल्पिक प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।










