कोई व्यक्ति लिफ्ट मांगकर 24 देशों की सैर कर आया हो यह सुनकर सभी को आश्चर्य हो सकता है और शायद विश्वास न हो। मगर यह बिलकुल सत्य है। झारखंड के धनबाद के शुभम कुमार ने करीब तीन वर्ष में 24 देशों की यात्रा सिर्फ लिफ्ट लेकर कर ली। इस दौरान शुभन करीब छह हजार लोगों से लिफ्ट मांगी। जिनसे लिफ्ट मांगी गई, उसमें मालवाहक वाहन से लेकर बाइक तक हैं। शुभम ने लिफ्ट लेकर एक लाख किमी तक का सफर ऐसे ही तय कर लिया।
महत्वपूर्ण बात यह है कि 24 देश घूम आए शुभम ने कभी पिता को भनक भी नहीं लगने दी कि वह कहां जा रहा है। घर वाले यही जानते थे कि शुभम दिल्ली में रहकर पढ़ाई कर रहा है। शुभम के पिता पेशे से शिक्षक हैं। वह धनबाद में अपनी मौसी के साथ रहते हैं।
बकौल शुभम वह जहां पहुंचे वहां के लोगों ने पानी पिलाया, खाना खिलाया और तो और रहने को जगह भी दी। 19 वर्षीय शुभम ने कहा, ‘दुनिया बहुत सुंदर है। हर जगह मदद करने वाले खड़े हैं।”
12वीं तक की पढ़ाई कर चुके शुभम ने बताया कि अप्रैल 2017 में वह घर से निकले। वह जानना चाहता था कि दुनियाभर के लोगों में अजनबी की मदद को लेकर क्या भावना है। किस देश की कैसी संस्कृति है। उसके दोस्तों ने मना किया, लेकिन, वह नहीं माना। घूमने का मन बनाया तो सबसे पहले पासपोर्ट और ट्रैवल वीजा बनवाया।
उसने बताया कि लिफ्ट लेकर सबसे पहले वह दिल्ली से कोलकाता पहुंचा। वहां से बांग्लादेश चला गया। दुनिया की सैर के दौरान ढाई सौ से ज्यादा परिवारों ने उसे सहारा दिया। बांग्लादेश, थाईलैंड, मलेशिया, वियतनाम, कंबोडिया, चाइना, मंगोलिया, रूस, कजाकिस्तान, अजरबैजान, कतर, तंजानिया, दुबई, इराक, अलमेनिया, अफगानिस्तान, यूक्रेन समेत 24 देशों की यात्रा की। यात्रा के दौरान डाक्टर, वकील, क्रिकेटर और फिल्म स्टार से लेकर ठेला चलाने वालों तक ने मदद की है। किसी भी दिन भूखे नहीं सोना पड़ा। लंबे सफर के लिए जरूर कई बार इंतजार करना पड़ा। वीजा को लेकर कुछ देशों में अधिकारियों को समझाना पड़ा।
शुभम के मुताबिक सबसे लंबा सफर रूस में किया। एक ट्रक से लिफ्ट मांगी, छह दिनों तक चलता रहा। करीब 4500 किलोमीटर की यात्रा कर यूक्रेन पहुंचा। ट्रक के चालक और सह चालक जो बनाते थे वही खा लेता। बदले में उनकी मदद खाना बनाने और बर्तन धोने में करता। यहां सड़क के किनारे खड़े होकर माइनस 40 डिग्री ठंड में लिफ्ट मांगते रहे। तीन दिनों के बाद उन्हें एक मालवाहक ट्रक ने लिफ्ट दी। वहां से वे ओमियाकोन (विश्व का सबसे ठंडा गांव) रवाना हुए। वहां माइनस 72 डिग्री ठंड थी। वहां बहुत कठिनाई हुई। ठंड के कारण लोग घरों के अंदर थे। काफी चिल्लाया, लोगों को आवाज दी। दो घंटे भटकता रहा। तब लगा कि दुनिया घूमने का शौक छोड़ दूंगा। इसी बीच एक परिवार ने घर का दरवाजा खोला। बहुत मदद की।
कोविड के कारण शुभम 29 अप्रैल 2020 को अजरबैजान के बाकू में फंस गया था। वहां एक हास्टल में शरण ली। 130 रुपये प्रति रात किराया था। कुछ पैसे थे, कुछ मदद ली। खुद से खाना बनाना पड़ता था। करीब चार महीने गुजारने के बाद जब लाकडाउन खुला तो तंजानिया, जंजीमार होते हुए अक्टूबर में भारत आया।
शुभम ने बताया कि उन्होंने काउ सर्फिंग नामक एप्लीकेशन डाउनलोड किया है। इसकी सहायता से वैसे लोगों के घर पर रुकता था जो इससे जुड़े हैं। एप्लीकेशन के माध्यम से सर्च करने पर पता चल जाता है कि जहां आप गए हैं, वहां कौन व्यक्ति अपने घर को शेयर करना चाहता है। यात्रा के दौरान ही शुभम के नाम से यूट्यूब पर वीडियो डाले। उसकी इच्छा है कि लोगों को अपनी कहानी के माध्यम से यह बता पाऊं कि दुनिया घूमने के लिए पैसे की कमी आड़े नहीं आती।