पंचायत चुनाव में महिला आरक्षण के दुरुपयोग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। याचिका में कहा गया कि महिला आरक्षण के चलते चुनाव तो पत्नियां जीतती हैं, लेकिन पंचायत उनके पति चलाते हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर विचार करने से ही इनकार कर दिया। लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, याचिका में आरोप लगाया गया था कि पंचायतों में महिला आरक्षण का दुरुपयोग हो रहा है क्योंकि आरक्षित सीटों पर अपनी पत्नियों के जीतने के बाद पति प्रॉक्सी के माध्यम से ग्राम पंचायत चला रहे हैं।
गौर हो कि अनुच्छेद 243डी(3) में महिलाओं के लिए पंचायत में कम से कम एक तिहाई सीटें आरक्षित करने की परिकल्पना है। याचिका में आरोप लगाया गया कि भले ही आरक्षण लागू किया गया है, लेकिन असल में यह एक प्रॉक्सी मॉडल के माध्यम से कार्य कर रहा है। इसमें निर्वाचित महिलाओं के पति पंचायतों का संचालन कर रहे हैं। याचिका में शीर्ष अदालत से रिसर्च कराने और दुरुपयोग को रोकने के लिए समाधान प्रदान करने के लिए एक समिति गठित करने की मांग की गई।
कोर्ट ने इस याचिका पर कोई नोटिस जारी नहीं किया है। यह याचिका मुंडोना ग्रामीण विकास फाउंडेशन की ओर से दायर की गई थी। न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता से संबंधित पंचायती राज मंत्रालय के सामने इस मुद्दो को उठाने के लिए कहा है कि क्या आरक्षण के उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए एक बेहतर तंत्र लागू किया जा सकता है।
पीठ की राय थी कि वर्तमान याचिका में उठाए गए मुद्दे को हल करना शीर्ष अदालत के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। इस पर गौर करना पंचायत राज मंत्रालय का काम है कि क्या आरक्षण के उद्देश्य को लागू करने के लिए कोई बेहतर तंत्र है। इस प्रकार याचिकाकर्ता संबंधित मंत्रालय को अभ्यावेदन दे सकता है।