
अपेक्षाएं जहां से खत्म होती हैं सुकून के रास्ते वही से निकलते हैं। अपेक्षा कभी भी सही परिणाम नही देती है। हमारी अपेक्षा एक दो लोगों के बीच में बहुत बड़ी खाई पैदा कर देती है हम अपेक्षा करते हैं लेकिन यह सच नहीं कि उस अपेक्षा को सामने वाला पूरा कर सके और वहीं से चालू होता है मतभेद इसलिए ना अपेक्षा करें और ना ही मन में किसी भी तरह का संदेह लाने दीजिए।
जब अपेक्षा ही नहीं होगी तो किसी भी बात के पूरा होने और नही होने के सवाल भी नही होंगे और जा सवाल भी नही होंगे तो ही जीवन में सुकून होगा।