आश्विन मास की पूर्णिमा का मान शरद पूर्णिमा का है। मान्यता है कि तिथि विशेष पर चंद्रदेव सोलह कलाओं से युक्त होकर आसमान में छाते हैं। अपनी चटक चांदनी पृथ्वी पर बरसाते हैं, मगर इस बार उसकी चंद्र रश्मियों से होने वाली अमृत वर्षा को खीर के कटोरे में पूरी रात सहेजने से लोग वंचित रह जाएंगे। कारण यह कि रात 1.05 बजे से खंडग्रास चंद्रग्रहण लग रहा है। इसका सूतक नौ घंटे पहले शाम 4.05 बजे लग जा रहा है। ग्रहण काल में भोजन, व्रत, पूजा-अनुष्ठान आदि वर्जित होते हैं। इस स्थिति में ज्योतिर्विदों ने बीच का रास्ता सुझाया है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय पांडेय के अनुसार ग्रहण से पहले कुशा से आच्छादित मखाना, कुट्टू, सांवा तिन्नी की खीर खुले आसमान के नीचे रखी जा सकती है। इसका सेवन सुबह स्नान-ध्यान के बाद किया जा सकता है।
शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा सोलह कलाओं से युक्त होता है। मान्यता है कि इस रात चंद्र किरणों से अमृत वर्षा होती है। इसी अमृत वर्षा में लोग खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रात में रखते हैं। इसे खाना स्वास्थ्य के लिए चमत्कारी माना जाता है लेकिन इस बार चंद्र ग्रहण के कारण ऐसा नहीं किया जा सकेगा। इस बार शनिवार 28 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा या कोजागरी पूर्णिमा के दिन ही वर्ष का पहला और अंतिम खंडग्रास चंद्रग्रहण है जो पूरे भारत में दिखाई देगा। ऐसा संयोग नौ वर्ष बाद बना है।
नौ घंटे पूर्व लग जाएगा सूतक
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में ज्योतिष विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. विनय पांडेय बताते हैं कि पूर्णिमा तिथि 28 अक्टूबर को 03:47 बजे भोर में लगेगी जो 29 अक्टूबर की भोर में 2:01 बजे तक रहेगी। चंद्रग्रहण का स्पर्शकाल रात्रि 1:05 बजे है, मध्यकाल 1:44 बजे है, 2:24 बजे मोक्ष होगा। ऐसे में संपूर्ण ग्रहण काल एक घंटा 19 मिनट का होगा लेकिन इसका सूतक काल ग्रहण के नौ घंटे पूर्व ही 4:05 बजे शाम से आरंभ हो जाएगा। सूतक काल में पूजन-अनुष्ठान, भोजन निर्माण व आहार ग्रहण आदि वर्जित कर्म माने गए हैं। इसलिए कोजागरी पूर्णिमा से जुड़े समस्त धार्मिक अनुष्ठान, भोजन आदि के कार्य शाम 4:05 बजे से पहले कर लेने होंगे।
कुश कम कर देते है विपरीत प्रभाव : प्रो. विनय पांडेय के अनुसार भोजन यदि बच गया हो या किसी कारणवश बाद में करना हो तो उसे कुश से ढक कर रखें। इससे ग्रहण का प्रभाव कम हो जाता है। खंडग्रास चंद्रग्रहण भारत में दृश्य होगा। चंद्रमा को नक्षत्राधिपति कहा गया है। चंद्रमा पर ग्रहण राहु का संकट काल होता है। इस काल में चंद्र किरणों की गुणवत्ता प्रभावित हो जाती है, ऐसे में सूतक काल में रखा भोजन विषाक्त हो जाता है। इसलिए कोजागरी पूर्णिमा को होने वाली लक्ष्मी-गणेश व कुबेर का पूजन उस दिन 4:05 बजे के पूर्व हो जाना चाहिए। बाल, वृद्ध व रोगी के लिए कोई वर्जना नहीं है। गर्भवती महिलाओं को चंद्रग्रहण काल में विशेष ध्यान रखना चाहिए।