
जैन मंदिर चढ़ावे में बेहतर किस्म का चावल अर्पित किया जाता है। कीमत कम होने के कारण यह चावल हाथों-हाथ बिक जाता था। पवित्र चावल के दुरुपयोग का मामला संज्ञान में आने पर मुनि संघ ने इसे गंभीरता से लिया है। साथ ही निर्णय लिया कि मंदिर का दान में मिले चावल गोशाला भेजा जाए। उनके आहवान के बाद से जैन समाज ऐसे चावल को गोशाला में भेज रहा है।
जैन मंदिरों में चढ़ावे के रूप में आने वाले चावल से अब कोई बिरयानी नहीं बना पाएगा। इस चावल को गोशालाओं में भेजा जाने लगा है। अब यह चावल गोधन के पौष्टिक आहार में शामिल हो गया है। दरअसल बाजार में पहुंचने पर इस चावल का इस्तेमाल बिरयानी बनाने में होने की बात पता लगी थी। इसके बाद भोपाल के जैन समाज ने मुनि संघ के यह नवाचार किया है।
जैन समाज के मंदिरों की देखरेख उनमें रहने वाले माली ही करते हैं। परंपरा के अनुसार मंदिरों में सामान्य रूप से या अनुष्ठान के दौरान अर्पित चावल आदि माली को मिलती थी। अपनी गुजर के लिए चावल बाजार में बेच देते थे। वर्ष 2019 में श्यामला हिल्स स्थित मैदान में संत प्रमाण सागर महाराज के सानिध्य में तीन दिवसीय सिद्धचक्र महामंडल विधान आयोजित हुआ था। उन्होंने अनुष्ठान और मंदिरों में अर्पित की जाने वाली सामग्री को गोशालाओं में भेजने को कहा था। साथ ही उन्होंने मालियों का पारिश्रामिक बढ़ाने की सलाह भी दी थी।
श्री दिगंबर जैन समाज कमेटी ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रमोद हिमांशु ने बताया कि अब चढ़ावे का चावल सूखी सेवनिया स्थित जीवदया गोशाला को भेजा जा रहा है। मालियों का पारिश्रामिक भी दो गुना कर दिया गया है। कुछ चावल पक्षियों को चुगने के लिए डाल दिया जाता है। जैन मंदिरों में चावल के साथ लौंग, इलायची, बादाम आदि समर्पित की जाती है। बड़े मंदिरों में रोजाना औसत 200 लोग यह सामग्री अर्पित करते हैं। एक श्रद्धालु की थाली में सूखे मेवे के साथ लगभग आधा किलो चावल रहता है।