मध्य प्रदेश में भले ही बीजेपी और कांग्रेस जैसे बड़े राजनीतिक दलों का नाम ही चर्चा में रहता है, लेकिन चुनाव में पता चलता है कि प्रदेश में बड़ी संख्या में छोटे-छोटे दल भी भाग्य आजमाते हैं। यह अलग बात है कि इनमें ज्यादातर दलों के प्रत्याशी तो अपनी जमानत तक नहीं बचा पाते। इसके बावजूद ये छोटे दल मध्य प्रदेश के मुख्य प्रतिद्वंदी बीजेपी और कांग्रेस के लिए मुसीबत का सबब बन जाते हैं।
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के समय कई ऐसे राजनीतिक दलों के नाम सुनने को मिलते हैं, जो सामान्य दिनों में नजर नहीं आते हैं। मौसमी फसलों की तरह दिखने वाले ये दल केवल वोट बैंक की फसल काटने के लिए ही चुनाव मैदान में आते हैं। कभी भ्रष्टाचार का मुद्दा देश में गर्म हुआ तो इसके नाम पर पार्टी बन गई तो कभी आरक्षण का मुद्दा उठा तो सपाक्स जैसी पार्टियों का गठन हो गया। कुछ ऐसे दल भी हैं जो किसी चुनाव में बड़ी चर्चा के साथ सामने आए, लेकिन बाद में सिर्फ नाममात्र के लिए रह गए। इस चुनाव में भी राष्ट्रीय दलों के अलावा बड़ी संख्या में दल चुनाव में मैदान में है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में पांच राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों के अलावा 107 राजनीतिक दल चुनाव मैदान में उतरे थे। दूसरे राज्यों में प्रभाव रखने वाली सात राज्य स्तरीय पार्टियों ने भी विधानसभा चुनाव में भाग्य आजमाया। इसमें आम आदमी पार्टी, आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, जनता दल सेक्युलर, शिवसेना और समाजवादी पार्टी शामिल हैं। हालांकि कांग्रेस का मानना है कि मतदाता समझदार है और वह जानता है कि किसे वोट देना है।
देश के 22 राज्यों में विभिन्न दलों को राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता मिली है, लेकिन मध्य प्रदेश में उनकी कोई पहचान नहीं है। हर चुनाव में दूसरे राज्यों के राज्य स्तरीय दल यहां 10 से कम उम्मीदवार उतारते हैं। कई दलों का गठन तो किसी विशेष मुद्दे के लिए होता है, लेकिन इसके ठंडा पड़ते ही दल भी कमजोर हो जाते हैं। इसका बड़ा उदाहरण सपाक्स और सवर्ण समाज पार्टी है। राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय दलों को छोड़ दें तो अन्य दलों को कुल मत का दो से पांच प्रतिशत के बीच मिलते हैं। इससे ज्यादा मत निर्दलीय प्रत्याशियों को मिल जाते हैं। हालांकि बीजेपी का अपना अलग मत है। बीजेपी का कहना है कि हर दल को चुनाव मैदान में उतरने का अधिकार है।
वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पार्टी मिलाकर कुल 90 दल ही मैदान में उतरे थे। इन दलों से 455 उम्मीदवार मैदान में उतरे थे, जिनमें एक को छोड़ बाकी की जमानत जब्त हो गई थी। 2008 के चुनाव में 91 दल चुनाव मैदान में उतरे थे। ज्यादातर छोटे दल पांच से 10 उम्मीदवार ही मैदान में उतराते हैं। इसमें अधिकतर दलों के प्रमुख पदाधिकारी ही होते हैं। दूसरे राज्यों की राज्य स्तरीय पार्टियों की रुचि भी अपने राज्य के सीमावर्ती जिलों की विधानसभा सीटों में प्रत्याशी उतारने में रहती है। कुछ पार्टियों को निर्वाचन आयोग से चुनाव चिन्ह आवंटित नहीं होने की वजह वह निर्दलीय प्रत्याशी उतारती हैं।