रायपुर। जब किसी काम को लेकर मन में उम्मीदें रखो तो आशा की किरण खुद रास्ता बना कर हम तक पहुंच जाती है। कुछ ऐसी ही कहानी है उस महिला की जिसने बड़े ही मुश्किल से ₹100 जोड़ कर समूह तैयार करने की सोची। आज वह समूह इतना बड़ा रूप ले लिया है कि एक नहीं दो नहीं बल्कि हजारों की संख्या में महिलाओं को रोजगार प्रदान करता है। महिलाएं अपने पैर पर खड़े होकर अपने साथ-साथ अपना परिवार भी पालत रही हैं। यह संभव हो पाया है राजनांदगांव की मेहनती बेटी फूलबासन बाई के कारण जो अपनी इच्छाशक्ति के बल पर अपने साथ-साथ कई महिलाओ को अपने जैसा सफल बनाने का निश्चय कर लिया। फूलबासन बाई को आज सिर्फ छत्तीसगढ़ राज्य में नहीं बल्कि पूरे देशभर में लोग पहचानने लगे है। आइए महिला दिवस के एक दिन पहले जाने फूलबासन के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी।
पद्मश्री, जमनालाल बजाज अस्तित्व अवार्ड, मिनीमाता अलंकरण, कोशल्यामता अवार्ड समेत कई नेशनल अवार्ड से नवाजी जा चुकी फूलबासन ने लोगों के सामने मिसाल खड़ी की है। उन्होंने केबीसी जैसे बड़े प्लेटफार्म में जाकर छत्तीसगढ़ का मान बढ़ाएं और यह साबित कर दिया है कि अगर इच्छाशक्ति साथ है तो उसे कोई भी नहीं रोक सकता। फूलबासन ने अपने समूह की शुरुआत चंद महिलाओं के साथ की थी उनकी सोच यह थी कि महिलाएं अपने पैर पर क्यों खड़े नहीं हो सकती। बस इस सोच को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने लगभग 14000 महिला समूह तैयार कर चुके हैं। इन महिला समूह में ना जाने कितनी महिलाएं अलग-अलग विधाओं पर काम कर रही है और उस में पारंगत हो कर हजारों रुपए भी कमा रही हैं। फूलबासन की माने तो ऑर्गेनिक खेती, बकरी पालन, मुर्गी पालन मछली पालन, अगरबत्ती बनाना डेरी, जिमीकंद की खेती जैसे कई काम कर महिलाएं उनसे जुड़ चुकी है।
Ekhabri.com से चर्चा के दौरान फूलबासन ने कहा कि महिलाओं को हमेशा कमजोर समझा जाता है लेकिन ऐसा नहीं है मौका आने पर वो हर चीज कर सकती हैं जिसका वह सपना देखती है।
फाइल फोटो
सपना होगा पूरा
ऐसी महिलाएं जिनका परिवार नहीं है और वह अकेले जीवन यापन करने में मजबूर हैं उन महिलाओं को मत देने का सपना विपुल वासन ने देखा था जिसे अबे साकार करने जा रहे हैं अलग-अलग है वादों से मिली सम्मान राशि का उपयोग व आश्रम बनाने के लिए भी करेंगे और भविष्य में महा ऐसी महिलाओं को आश्रय देंगी जिनको रखने वाला कोई नहीं वहां रख कर उन्हें काम भी सिखाएंगे और रोजगार भी प्रदान करेंगी।
महिलाएं हुईं खुद शामिल
फूलबासन ने एक और दो नहीं बल्कि आसपास के 25 गांव की महिलाओं को जोड़कर एक डेरी तैयार करी जिसे आगे बढ़ाने का जिम्मा इन महिलाओं को दे दिया है। अब यहां महिलाएं गाय पालन के साथ-साथ डेरी प्रोडक्ट तैयार कर उसकी भी बिक्री का काम कर रही हैं जिससे हजारों रुपए मुनाफा हो रहा है और उनका घर चल रहा है। इतना ही नहीं भगवान में चढ़े हुए फूलों का दुबारा उपयोग कर अगरबत्ती बनाने का भी नेक काम यह महिलाएं कर रही है। इसमें लगभग 200 से ज्यादा महिलाएं जुड़कर अगरबत्ती बना रही हैं। फूलबासन की माने तो विभिन्न समूहों से जुड़ी महिलाएं लगभग 9 से 10 हजार महीना कमा कर आराम से अपने घर को चला रही जब महिलाओं को अपने पैर पर। खड़े हुए देखती हूं तो बड़ा ही अच्छा लगता है और मेरा सपना है कि देश की हर महिला खुद काम आए और खुद अपनी सुरक्षा भी कर सके।