प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिर से कच्चातिवु द्वीप का जिक्र कर कांग्रेस पर हमला किया। इससे पहले उन्होंने इस द्वीप का जिक्र संसद में किया था। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ऑफिशियल एक्स हैंडल पर इस बारे में लिखा और कहा कि नए तथ्यों से पता चलता है कि कितनी बेरहमी से कांग्रेस ने कच्चातिवु को श्रीलंका को दे दिया।
साल 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और श्रीलंका के राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके ने एक समझौता किया था, जिसे ‘भारत-श्रीलंकाई समुद्री समझौते’ के नाम से जाना जाता है। इसके तहत कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया। भले ही इस द्वीप को कांग्रेस सरकार ने श्रीलंका को दे दिया हो, लेकिन तमिलनाडु में इसका जमकर विरोध हुआ था। उस समय के मुख्यमंत्री करुणानिधि ने इसका पुरजोर विरोध किया था। इसके बाद साल 1991 में एक प्रस्ताव लाकर इस द्वीप को वापस लाने की मांग की गई।
समझौते के तहत कच्चातिवु द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया, जिसमें कुछ शर्तें रखी गईं। जैसे कि भारतीय मछुआरे जाल सुखाने के लिए इस द्वीप का इस्तेमाल करेंगे। इस द्वीप पर बने चर्च में भारतीयों को बिना वीजा के जाने की इजाजत होगी। हालांकि इस द्वीप भारतीय मछुआरे मछली नहीं पकड़ सकते।
साल 2008 में तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने कच्चातिवु द्वीप को लेकर हुए समझौते को अमान्य घोषित करने की मांग की। याचिका में कहा गया कि इस द्वीप को गिफ्ट में श्रीलंका को दे देना असंवैधानिक है। इसे लेकर तमिलनाडु की सियासत हमेशा से गर्म रही है। इसी मुद्दे को लेकर लोकसभा चुनाव 2024 से पहले पीएम मोदी ने फिर से कांग्रेस को निशाने पर लिया है।
यहाँ है कच्चातिवु द्वीप
यह द्वीप हिंद महासागर में भारत के दक्षिणी छोर पर स्थित है। ये भारत के रामेश्वरम और श्रीलंका के बीच में पड़ता है। कच्चातिवु द्वीप 17वीं शताब्दी में मदुरई के राजा रामानद के अधीन था, जो 285 एकड़ एरिया में फैला है। अंग्रेजों के शासन के दौरान ये द्वीप मद्रास प्रेसीडेंसी के पास चला गया। साल 1921 में भारत और श्रीलंका दोनों ने मछली पकड़ने के लिए इस जगह पर दावा किया। आजादी के बाद साल 1974-76 के बीच समुद्र की सीमा को लेकर 4 समझौते हुए, जिसके तहत भारतीय मछुआरों को यहां जाल सुखाने और आरम करन की इजाजत दी गई।
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