
नई दिल्ली: भारत चीन सीमा पर पिछले एक महीने से चल रहे तनाव को खत्म करने के लिए दोनों देशों के सैन्य कमांडर्स ने लद्दाख से सटी वास्तविक नियंत्रण रेखा पर शनिवार को साढ़े पांच घंटे से भी ज्यादा लंबी बैठक की. हालांकि देर शाम तक ये साफ नहीं हो पाया कि दोनों देशों की सेनाओं की अब तक की सबसे बड़ी बैठक का नतीजा और निष्कर्ष क्या निकला, लेकिन ये माना जा रहा है कि भारत ने मीटिंग में दो टूक कह दिया है कि चीनी सेना को ‘अप्रैल महीने के शुरूआत वाली स्थिति’ पर ही लौटना होगा.
शनिवार सुबह से मीटिंग को लेकर देश-विदेश में चर्चा थी. लेकिन मीटिंग करीब डेढ़ घंटा देरी से शुरू हुई. इस देरी का कारण भी हालांकि नहीं बताया गया. लेकिन आखिरकार मीटिंग भारत के समयनुसार दिन के साढ़े ग्यारह बजे (11.30 बजे) शुरू हुई. भारत की तरफ लेह स्थित 14वीं कोर के कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह ने प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया. जबकि चीन की तरफ से दक्षिणी शिंचियांग मिलिट्री डिस्ट्रिक के कमांडर, मेजर जनरल लियु लिन ने किया. मीटिंग वास्तविक नियंत्रण रेखा यानि एलएसी पर चीन की तरफ मोलडो में बनी बॉर्डर पर्सनैल मीटिंग (बीपीएम) हट में हुई, जो भारत की चुशूल स्थित बीपीएम हट से सटी हुई है. पैंगोंग त्सो लेक से मोलडो की दूरी करीब 18 किलोमीटर है.
मीटिंग अभी शुरू ही हुई थी कि भारतीय सेना की तरफ से सीमा पर चल रहे तनाव और उसे सुलझाने के लिए की जा रही कोशिशों को लेकर आधिकारिक बयान जारी कर दिया गया. सेना के प्रवक्ता, कर्नल अमन आनंद ने कहा, “भारत और चीन के अधिकारियों के बीच बॉर्डर की मौजूदा स्थिति से निपटने के लिए सैन्य और राजनयिक स्तर पर बातचीत चल रही है. इसलिए इस समय अटकलों और निराधार रिपोर्टिंग सही नहीं है और मीडिया को ऐसी रिपोर्टिंग से बचना चाहिए.”
शाम तक चली इस मीटिंग के बारे में सेना की तरफ से फिलहाल कोई जानकारी नहीं दी गई है (जैसे ही सेना से कोई आधिकारिक जानकारी दी जाएगी तो उसे स्टोरी में अपडेट कर दिया जाएगा). लेकिन सूत्रों से ये जानकारी जरूर मिल गई कि भारतीय सैन्य प्रतिनिधिमंडल ने मीटिंग में अपने चीनी समकक्ष से क्यां मांग रखी. सूत्रों के मुताबिक, भारतीय सेना ने साफ कर दिया कि चीन को स्टेट्स-कयो यानि अप्रैल महीने की शुरूआत वाली स्थिति पर लौटना पड़ेगा. साथ ही भारत सीमावर्ती इलाकों में सड़क और दूसरा निमार्ण-कार्य नहीं रोकेगा, जिसके लिए चीन की तरफ से मांग रखी गई थी. भारत ने दो टूक कहा कि जो भी निमार्ण-कार्य किया गया है या किया जा रहा है वो भारत के अधिकार-क्षेत्र में है, किसी विवादित इलाके में नहीं है.
सूत्रों के मुताबिक, लेह लौटने पर कोर कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह सबसे पहले उत्तरी कमान के कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल वाई के जोशी से मीटिंग का सारा लेखा-जोखा साझा करेंगे. उसके बाद ये जानकारी सेना मुख्यालय में तैनात डीजीएमओ यानि डॉयरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्रि ऑपरेशंस को बताया जाएगा ताकि सेना प्रमुख और देश के राजनैतिक सैन्य-नेतृत्व को इस की जानकारी दी जाए. सेना मुख्यालय साथ ही विदेश मंत्रालय से भी मीटिंग की जानकारी साझा करेगा. उसके बाद ही निष्कृष निकालकर मीटिंग का नतीजा दुनिया के सामने लाया जा सकता है. हालांकि, सूत्रों की मानें तो विवाद पूरी तरह से सुलझाने के लिए अभी सैन्य और राजनयिक स्तर पर कई और मीटिंग हो सकती हैं.
इस बीच दोनों देशों के सैन्य कमांडर्स की रैंक को लेकर भी विवाद पैदा हो गया. इस बात पर सवाल खड़े किए जाने लगे कि क्या भारत के लेफ्टिनेंट-जनरल रैंक के अधिकारी को चीन के एक पायदान नीचे, मेजर-जनरल रैंक के अधिकारी से क्या वाकई मीटिंग करनी चाहिए थी. लेकिन सेना मुख्यालय के सूत्रों ने साफ किया कि ये मीटिंग रैंक-स्तर की नहीं बल्कि पोस्ट यानि बराबर ओहदे वालों की थी. क्योंकि चीन में भारत की सैन्य-कोर के समकक्ष चीन की मिलिट्री-डिस्ट्रिक होती है तो उसके कमांडर ही मीटिंग में हिस्सा ले सकते थे (आपको बता दें कि चीन की पीप्लुस लिबरेशन आर्मी यानि पीएलए की सैन्य-संरचना और पद भारतीय सेना से अलग है).
भारत मे लेफ्टिनेंट-जनरल हरिंदर सिंह के बारे में चर्चा होने लगी तो चीन में भी मेजर-जनरल लियु लिन से जुड़े किस्सें प्रचलित होने लगे. कहा जाने लगा कि मेजर-जनरल लियु लिन 55 साल के जरूर हैं लेकिन अभी भी रोज आठ (08) किलोमीटर साईकिल चलाते हैं और 20 साल के सैनिक के साथ आज भी ट्रैनिंग लेते हैं. लियु अपनी बैरेट यानि कैप पर एक पिन लगाते हैं ताकि वे अपने किसी ‘सीनियर’ को सैल्यूट करें और उन्हें पता रहे कि उन्होनें सही सैल्यूट किया है या नहीं. जहां पिन लगी होती है वहां उनकी उंगली लगती है और उसमें खून बहता है तो वो आश्वस्त होते हैं कि उन्होनें अपने सीनियर को सही सैल्यूट किया है.