इस्लाम धर्म के अनुसार ईद का त्योहार धूमधाम से मनाया गया. ईद की नमाज के बाद लोग एक-दूसरे का मुंह मीठा कराकर इस त्योहार की बधाई दी. माना जाता है कि यह त्योहार बिना सेवइयों के फीका है। इस दिन मुस्लिम लोगों को घरों में सेवईं जरूर बनती है और सभी लोग खाते-खिलाते हैं। लेकिन, क्या आप यह जानते हैं कि ईद पर पहली बार सेवईं कब और कहां बनी और इसका कनेक्शन भारत से कैसे हुआ?
रिपोर्ट्स की मानें तो इस्लाम में सेवइयों का इतिहास नहीं मिलता है। न ही ईद पर सेवइयां खाने और खिलाने का कोई रिवाज है, बल्कि सऊदी अरब में सेवई के बजाय खजूर या कुछ और मिठाई खिलाई जाती है। ईद की नमाज से पहले कुछ मीठा खाने का चलन सदियों से चला आ रहा है। कहा जाता है कि हजरत मुहम्मद साहब भी ईद के दिन शहद और हलवा खाते थे। इसकी वजह यह है कि मीठा एनर्जी देता है और इसकी वजह से भूख देर से लगती है, इसलिए सेवइयां ईद पर खाई जाने लगीं।
इतिहासकार राना सफवी कि किताब में सेवइयों से जुड़े किस्सों का जिक्र मिलता है। भारत में पहली बार सेवइयां लाल किले में हुई एक शाही दावत में बनी थीं। वो 19वीं सदी का दौर था जब ईद के दिन बहादुर शाह जफर के दस्तरख्वान में दूध के साथ सेवइयां पकी थीं। तभी से भारत में ईद के दिन सेवइयों की मिठास घुल गई और इसे ईद के आइकन के रूप में देखा जाने लगा।
सेवइयां सिर्फ मुस्लिमों में नहीं, बल्कि देशभर के अलग-अलग हिस्सों में खाई जाती है। वहां इसे लोग अलग नामों से जानते हैं। उत्तर भारत में दो तरह की सेवइयां होती है, एक तो बाल के समान पतली जो बनारस की सेवइयां होती हैं और दूसरी सेवईं थोड़ी मोटी होती है। दोनों को ही मुख्य रूप से दूध में पकाकर बनाया जाता है। पंजाब-हरियाणा में इनको जवें बोलते हैं, जो घरों में महिलाएं बनाती हैं। कर्नाटक में इसे शेविगे कहा जाता है, जो चावल या रागी के आटे से बनती है। महाराष्ट्र में शेविगे को दुल्हन के साथ दहेज में भेजा जाता है।
गुजरात में भी सेवइयां खाई जाती हैं। वहां इनको हाथों से सुखाकर पतला और लंबा बनाते हैं। राजस्थानी और सिंधियों में सबसे बेहतरीन सेवईं मिलती हैं। यहां इनको फेनी कहा जाता है और ये हाथों से खींच-खींचकर बनाई जाती हैं। लखनऊ में बारीक सेवइयों को चाशनी, मावा और ड्राई फ्रूट्स के साथ मिलाकर बनाया जाता है, इसे किमामी सेवईं कहते हैं। इस सेवईं को बनाने का तरीका थोड़ा मुश्किल है, लेकिन खाने में बहुत स्वादिष्ट लगती है।
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