
गुजरात हाई कोर्ट ने एक परिवार अदालत के आदेश को पलटते हुए कहा है कि महिला को कोर्ट के आदेश से पति के साथ रहने और उसके साथ वैवाहिक अधिकार स्थापित करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। हाई कोर्ट ने कहा कि पहली पत्नी अपने पति के साथ इस आधार पर रहने से इन्कार कर सकती है कि मुस्लिम कानून बहुविवाह की अनुमति देता है, लेकिन कभी प्रोत्साहित नहीं करता।
हाई कोर्ट की जस्टिस जेबी परदीवाला और जस्टिस नीरल मेहता की खंडपीठ ने अपने हालिया आदेश में कहा कि मुस्लिम कानून पति को ऐसा कोई मौलिक अधिकार नहीं देता कि वह अन्य महिला के साथ उसके समूह को साझा करने के लिए पत्नी को मजबूर कर सके। इस सिलसिले में गुजरात हाई कोर्ट ने दिल्ली हाई कोर्ट के उस हालिया आदेश का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि समान नागरिक संहिता संविधान में सिर्फ एक उम्मीद बनकर नहीं रह जानी चाहिए।
गुजरात हाई कोर्ट ने कहा कि इस मामले में वैवाहिक अधिकारों की बहाली का फैसला पूरी तरह पति के अधिकार पर निर्भर नहीं है और परिवार अदालत को यह भी विचार करना चाहिए कि क्या पत्नी को उसके पति के साथ रहने के लिए मजबूर करना उसके साथ अन्याय तो नहीं होगा। कोर्ट ने यह टिप्पणी उस महिला की याचिका को अनुमति प्रदान करते हुए की जिसने बनासकांठा जिले की परिवार अदालत के जुलाई, 2021 के आदेश्ा को चुनौती दी थी। इस आदेश में परिवार अदालत ने महिला को अपने पति के घर जाने और वैवाहिक दायित्वों को निभाने का आदेश दिया था।