
आइए जाने कुछ ब्लड डोनर की कहानी
दानों ने सबसे बड़ा दान रक्त दान है, जो अपने स्वर्थ के लिए नहीं बल्कि दूसरों को जीवान दान देने के लिए किया जाता है। आज अपको ऐसे लोगों से रूबरू कराएं जिन्हों ने ब्लड डोनेट कर कई लोगों की जान बचाई है। कुछ डोनर ऐसे भी हैं जिन्होंने क्रिटीकल पेशेंट के लिए खुद को रिजर्व कर रखा है। वहीं कुछ ने अपने साथ हजारों लोगों की चेन बना कर इस मुहीम को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया है।

सौ से भी अधिक बार ब्लड डोनेट कर चुके शरद सिंह ठाकुर के लिए ब्लड डोनेट करना जीवन का अभिन्न अंग हो गया है। वे लंबे समय से ब्लड डोनेट करते आ रहे हैं। शरद की माने तो अगर उनके ब्लड से किसी की जिंदगी बचती है तो ये खुशी की बात है। जीवन में कई बार ऐसा समय आया जब लोगों को काफी परेशान और बेबस देखा उस समय से ही वे लोगों के सामने मिसाल रखने का प्रण किए।
18 माह की बच्ची के लिए देते हैं ब्लड

तात्यापारा निवासी विवेक साहू 2012 से ब्लड डोनेट कर रहे हैं। वे 18 माह की बच्ची के लिए अपने आप को रिजर्व रखे हैं। बच्ची को थैलेसीमिया की शिकायत है जिसके कारण उसे हर 15 दिन में ब्लड चढ़ाना पड़ता है। उनका सोचना है कि एक एक डोनर अगर कुछ थैलेसीमिया व सिकलसेल के मरीजों के लिए अपने आप को रिजर्व रखे तो मरीज के परिजनों को बहुत मदद मिलती है। यही कारण है कि वे अपने ग्रुप के लोगों के साथ ऐसे गंभीर मरीजों के लिए रिजर्व हो चुके हैं। इससे लोगों को हर बार डोनर खोजने की जरुरत नहीं पड़ती है। विवेक छत्तीसगढ़ ब्लड डोनर फाउंडेशन से जुड़े हैं। इस ग्रुप की शुरुआत मात्र 6 लोगों से हुई थी जिसमें अब वेबसाइट में 1100 लोग जुड़ चुके हैं, वहीं वॉट्सअप ग्रुप से जुड़ने वालों की संख्या भी कम नहीं है।

पेशे से शिक्षक होमेश्वर विश्वास रक्तदान को सबसे बड़ा दान मानते हैं। वे बताते हैं कि सही वक्त में ब्लड का इंतजान नहीं हो पाने के कारण उनकी नानी का देहांत हो गया था। ये बात उनके मन में घर कर गई। उसके बाद से ही वे ब्लड डोनेशन के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। वे खुद 27 से अधिक बार डोनेट कर चुके हैं और लोगों को भी इसके लिए जागरुक करते हैं। अपनी इस मुहीम में उनहोंने सैकड़ों लोगो को शामिल किया है।
पत्थर में फंसे अनजान को दिया ब्लड

पत्थर मे फंसे एक मजदूर को भाटागांव निवासी चंदा प्रजापति ने ब्लड डोेनेट किया। चोट की वजर से उस मजदूर का काफी खून बह गया था। उसकी हालत नाजुक होती जा रही थी, जिसे लोगों की मदद से अस्पताल पहुंचाया गया। ब्लड दिया गया लेकिन अफसोस वो नहीं बच पाया। चंदा का कहना है अपने लिए सब सोचते है लेकिन अनजान लोगों की मदद के लिए भी सामने आना सच्ची इंसानियत है।
खुद न बन सकी रेगुलर डोनर पर तैयार की श्रृंखला

कटोरा तलाब निवासी श्रद्धा साहू को थाइयाइड होने के कारण वे सिर्फ एक ही बार ब्लड डोनेट कर पाई हैं। इसका उन्हें अफसोस रहता था। इस मलाल को दूर करने के लिए उन्होंने मुहीम शरु की और इसमें लोगों को जोड़ना शुरु किया। छत्तीसगढ़ ब्लड डोनर फाउंडेशन में सक्रिय योगदान देते हुए उन्होंने औरों में जागरुकता लाने के लिए कैंपेन चालू किए और सफल भी रहीं। वे बताती हैं कि एक बार में स्वस्थ व्यक्ति 350 एमएल रक्त दे सकता है। लोगों में जागरुकता ला कर वे अपने ग्रुप में और लोगों को भी जोड़ना चाहती हैं।