
अमेरिकी विज्ञानियों ने एक नवीन अध्ययन में पाया कि आंखों में जलन व नाक बहने के लिए जलवायु परिवर्तन भी जिम्मेदार हो सकता है। अध्ययन निष्कर्ष फ्रंटियर्स इन एलर्जी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। विज्ञानियों का आकलन है कि जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2050 तक वातावरण में पराग कण का भार काफी ज्यादा हो जाएगा। यह दबाव उस इलाके में भी महसूस किया जाएगा, जहां फिलहाल पराग कण की उपस्थिति न के बराबर है।
राबर्ट वुड जानसन मेडिकल स्कूल के फैकल्टी व रटगर्स स्थित कम्प्यूटेशनल केमोडायनोमिक्स लेबोरेटरीज के निदेशक जार्जोपोलोस के अनुसार,”पराग कण जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के उत्कृष्ट संकेतक हैं, क्योंकि कार्बन डाइआक्साइड व तापमान में बदलाव का इन पर त्वरित असर पड़ता है। जलवायु परिवर्तन के कारण पराग कणों के निर्माण में तेजी आती है, जिसके कारण एलर्जी की बीमारियां भी बढ़ जाती हैं। यह अध्ययन जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के पूर्वानुमान में मददगार साबित होगा।”
जलवायु परिवर्तन का पराग कणों पर पड़ने वाले प्रभाव संबंधी पूर्ववर्ती अध्ययन जानकारियों की कमी के कारण सीमित रहे हैं। हालिया अध्ययन में अमेरिका के 80 पराग कण संग्रह केंद्रों के आंकड़ों की मदद ली गई। इसके अलावा वायु गुणवत्ता की निगरानी करने वाले विभाग का भी सहारा लिया गया। इस दौरान पाया गया कि मध्यम गर्म मौसम भी परागण की जल्द शुरुआत के लिए जिम्मेदार हो सकता है। एलर्जी पैदा करने वाले फूलों के पराग कण की हवा में मौजदूगी आंखों में जलन व नाक बहने के लिए जिम्मेदार हो सकती है।