केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी मुहर लगा दी है। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने चार-एक के बहुमत से दिए फैसले में कहा है कि नोटबंदी की प्रक्रिया में कोई कानूनी खामी नहीं थी। इसलिए नोटबंदी की घोषणा करने वाली आठ नवंबर, 2016 की अधिसूचना रद करने लायक नहीं है। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने बहुमत से असहमति व्यक्त करते हुए अलग से दिए फैसले में कहा कि नोटबंदी का फैसला राष्ट्र की बेहतरी के उद्देश्य से लिया गया था। लेकिन, कानूनी आधार पर इसकी प्रक्रिया दूषित थी। नोटबंदी की प्रक्रिया को कानून सम्मत ठहराने वाला सुप्रीम कोर्ट का बहुमत का फैसला सरकार के लिए बड़ी राहत देने वाला है, जो नोटबंदी के बाद से विपक्षी दलों के निशाने पर थी।
सोमवार को जस्टिस एस अब्दुल नजीर, बीआर गवई, एएस बोपन्न्ा, वी. रामासुब्रमण्यम और बीवी नागरत्ना की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने नोटबंदी को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं पर यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया। चार न्यायाधीशों की ओर से बहुमत के फैसले में हर उस बिंदु को खारिज कर दिया गया, जिस पर कुछ लोग सवाल खड़े कर रहे थे। बहुमत का फैसला सुनाते हुए जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि 500 और 1000 के नोट को प्रतिबंधित करने की अधिसूचना वैध थी।
केंद्र सरकार को सभी सिरीज के नोटों को प्रतिबंधित करने का अधिकार है। पूर्व में दो मौकों पर कानून के जरिये नोटबंदी हुई थी। सिर्फ इस आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि केंद्र सरकार को रिजर्व बैंक आफ इंडिया (आरबीआई) की धारा 26 की उप धारा 2 में नोटबंदी की शक्ति नहीं है। कोर्ट ने कहा कि नोटबंदी के लिए सरकार और आरबीआइ के बीच छह महीने से संवाद चल रहा था। आर्थिक नीति के मामलों में न्यायिक समीक्षा का दायरा सीमित होता है। आर्थिक नीति के मामलों में बहुत संयम बरतना पड़ता है।
बहुमत की पीठ ने कानूनी सवालों का उत्तर देते हुए मामले को प्रधान न्यायाधीश के समक्ष पेश करने का रजिस्ट्री को निर्देश दिया है, ताकि याचिकाओं को उचित पीठों के समक्ष सुनवाई पर लगाया जा सके। जस्टिस गवई ने स्वयं, जस्टिस नजीर, जस्टिस बोपन्ना और जस्टिस रामासुब्रमण्यम की ओर से फैसला सुनाया। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने अलग से असहमति का फैसला दिया।
क्या है मामला
आठ नवंबर 2016 को सरकार ने 500 और 1000 के नोटों को बंद करने की घोषण्ाा की थी। नोटबंदी की इस घोषणा पर व्यापक प्रतिक्रिया हुई थी। विभिन्न् हाई कोर्टों और सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल कर नोटबंदी को चुनौती दी गई। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सभी उच्च न्यायालयों में लंबित मामले अपने यहां स्थानांतरित कर लिए थे। सुप्रीम कोर्ट में 58 याचिकाएं लंबित थीं, जिनमें नोटबंदी को चुनौती दी गई थी।
सरकार ने यह बताया था उद्देश्य
नोटबंदी के पीछे सरकार का उद्देश्य था कि काले धन पर लगाम लगे। काले धन और हवाला कारोबार के जरिये पनप रही आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगे। कैश्ालेस इकोनमी को बढ़ावा मिले और नकली करेंसी पर लगाम लगे। सरकार को अपने उद्देश्यों में काफी कुछ सफलता भी मिली है। देश्ा में कैशलेस लेनदेन का चलन बढ़ा है। अब दुनिया का 40 प्रतिशत डिजिटल लेनदेन भारत में होता है।
कब क्या हुआ
आठ नवंबर, 2016 : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश को संबोधित करते हुए 500 और 1,000 रुपये के नोटों को चलन से बाहर किए जाने का एलान किया।
नौ नवंबर, 2016 : सरकार के इस फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई।
28 सितंबर, 2022 : सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में न्यायमूर्ति एसए नजीर की अध्यक्षता में संविधान पीठ का गठन किया।
सात दिसंबर, 2022 : सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा।
दो जनवरी, 2023 : संविधान पीठ ने नोटबंदी के फैसले को 4:1 के बहुमत से सही ठहराया। कहा कि नोटबंदी की निर्णय प्रक्रिया दोषपूर्ण नहीं थी।
छह साल बाद फैसले के मायने
पिछले छह वर्षों में इकोनमी और समाज नोटबंदी के झटके से उबर चुका है। इसलिए विश्ोषज्ञों की नजरों में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला महज एक अकादमिक कवायद है। पिछले साल नवंबर-दिसंबर में सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह नोटबंदी के फैसले को खारिज नहीं करेगी, क्योंकि घड़ी की सुई को पीछे की तरफ नहीं मोड़ा जा सकता है। लेकिन, इस पर किए जाने तर्क-वितर्क से भविष्य में ऐसे फैसलों के लिए आधार तैयार हो सकता है।