बच्चों को डायपर पहनाकर निश्चित होने वाले माता-पिता के लिए यह खबर काम की है। डायपर पहनाना बच्चों के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। इसका पता पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले गैर सरकारी संगठन टॉक्सिक लिक के एक अध्ययन में चला है। अध्ययन के मुताबिक डायपर में खतरनाक रसायनों एवं प्लास्टिक के अंश भी पाए जाते हैं। महत्वपूर्ण बात यह कि प्रसिद़ध कंपनियों के डायपर भी इससे अछूते नहीं हैं।
‘वाट्स इन द डायपर : प्रेसेंस ऑफ थैलेट्स इन बेबी डायपर्स” शीर्षक से जारी अध्ययन रिपोर्ट में बाजार में उपलब्ध डिस्पोजेबल बेबी डायपर में विषैले थैलेट (रसायन और प्लास्टिक के अंश) पाए जाने पर चिंता व्यक्त की गई है। ये थैलेट, अंत:स्रावी रसायनों की कार्यप्रणाली में व्यवधान उत्पन्न् कर स्वास्थ्य को गंभीर हानि पहुंचाते हैं।
अध्ययन के दौरान डायपर में 2.36 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) से लेकर 302.25 पीपीएम तक थैलेट की अत्यधिक मात्रा पाई गई। डीईएचपी सबसे विषाक्त थैलेट है। बच्चों के कई उत्पादों में इसका उपयोग कानूनन प्रतिबंधित है, लेकिन जांच में इसकी मात्रा भी 2.36 पीपीएम से 264.94 पीपीएम के बीच पाई गई।
इस अध्ययन के लिए दिल्ली में स्थानीय बाजारों एवं केमिस्ट की दुकानों से 20 डायपर के नमूने एकत्र किए गए। कुछ डायपर आमतौर पर उपयोग किए जाने वाले ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों से भी खरीदे गए थे। कुल 40 फीसद नमूने स्थानीय साप्ताहिक बाजार से खरीदे गए थे, जबकि 60 फीसद नामी कंपनियों के थे। सभी नमूनों का विश्लेषण एनएबीएल से मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला (स्पेक्ट्रो एनालिटिकल लैब लिमिटेड ओखला, नई दिल्ली) में किया गया।
अध्ययन से लेबलिग भी बड़ी चिंता के रूप में सामने आई है। जांच किए गए नमूनों में से किसी पर भी डायपर बनाने के लिए उपयोग किए गए अवयवों और रासायनिक घटकों को सूचीबद्ध नहीं किया था। टॉक्सिक लिक के वरिष्ठ कार्यक्रम समन्वयक पीयूष महापात्र ने बताया कि भारत ने बच्चों के विभिन्न् उत्पादों में पांच सामान्य थैलेट (डीईएचपी, डीबीपी, बीबीपी, डीईटीपी, डीएनओपी, डीएनपी) के लिए मानक तय किए हैं। लेकिन डिस्पोजेबल बेबी डायपर के लिए ऐसा कोई नियमन नहीं है।
यह है थैलेट
थैलेट आमतौर पर डायपर में उपयोग किए जाने वाले बहुलकों (पॉलीमर्स) से सहसंयोजक रूप से आबंधित होते हैं। वे डायपर से आसानी से मुक्त हो जाते हैं। चूंकि डायपर कई महीनों तक बच्चों के बाहरी अंगों के साथ सीधे संपर्क में रहते हैं, इसलिए ये थैलेट त्वचीय अवशोषण के माध्यम से उनके शरीर में प्रवेश कर सकते हैं। इससे उनका स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।