- आतंक के दहशत से धीरे-धीरे आजाद होता कश्मीर
भादो माह के कृष्ण पक्ष अष्टमी के दिन मनाया जाने वाला जन्माष्टमी त्यौहार जो भगवान श्री कृष्ण का अवतरण दिवस है, पूरे भारतवर्ष में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा की साजो सजावट से लेकर वहाँ पूजन करने का तरीका, बाल गोपाल का मनोहारी रूप और भक्तों का जमावाड़ा देखने लायक रहता है, लेकिन आज पूरे देश में ऐसे स्थल के जन्माष्टमी की चर्चा है जो वाकयी हमें आतंकमुक्त भारत बनने का स्वप्न दिखाती है।
ये स्थल है, कश्मीर के ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर का लाल चौक। ये वही चौक है जो आतंक का पर्याय बन चुका था। यहाँ तिरंगा झंडा फहराने से लेकर सामाजिक धार्मिक सम्मेलन करना भी चुनौती बन चुका था। आर्टिकल 370 ए के हटने और कोरोना संक्रमण के दौरान लगे लंबे लॉकडाउन के बाद इस वर्ष जन्माष्टमी का पर्व आजाद रूप से प्रसन्न माहौल में मनाया गया। कृष्ण जी की झाँकी,कश्मीरी पंडितों द्वारा पूजन, ढोल नंगाड़ो का सुर और धार्मिक एकता का परिचय देते हिन्दू मुस्लिम भक्तों ने धूमधाम से श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव में शामिल हुये।
बाल कन्हैया और राधा का रूप लिये सजे संवरे बच्चे भी झाँकी का हिस्सा बने। इस दौरान भारतीय सेना ने सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम किये और लोगों को दहशत के इतिहास को भूलने और निडर होकर नये भारत को गढ़ने का अवसर दे सुंदर संदेश दिया। यदि धार्मिक कट्टरता को त्याग कर ऐसा ही दृश्य सभी त्यौहारों में देखने मिले तो निश्चित ही अब कश्मीर अपनी विलगता को दूर कर अपनी विशिष्ट पहचान को सही मार्ग में बनाये रखने में सफल होगा।