20 सितंबर से इस वर्ष के पितरों की पूजा शुरू हो चुकी है। श्राद्ध पक्ष हर साल आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर और आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि तक मनाया जाता है।
कौन सी तिथि को मानें अपने पूर्वजों का श्राद्ध
पितृपक्ष भाद्रपद की पूर्णिमा से शुरु होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलते हैं। आश्विन माह के कृष्ण पक्ष को ही पितृपक्ष कहा जाता है।
[ ] भाद्रपद ‘पूर्णिमा’ को उनका श्राद्ध किया जाता है जिनका निधन वर्ष की किसी भी पूर्णिमा को हुआ हो।
[ ] शास्त्रों के अनुसार भाद्रपद पूर्णिमा के दिन देह त्यागने वालों का तर्पण आश्विन अमावस्या को करना चाहिए।
[ ] वर्ष के किसी भी पक्ष में जिस तिथि में घर के पूर्वज का देहांत हुआ हो उनका श्राद्ध कर्म पितृपक्ष की उसी तिथि को करना चाहिए।
[ ] यदि किसी परिजन की अकाल मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है।
[ ] इसी तरह पिता का श्राद्ध अष्टमी को किया जाता है।
[ ] माता का श्राद्ध नवमी तिथि को करने की मान्यता है।
क्या है सर्वपितृ ऋण
अगर आपको अपने पूर्वजों की श्राद्ध तिथि याद नहीं है तो भी आप तर्पण कर सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार पितरों, पूर्वजों के देहावसान की तिथि ज्ञात ना होने पर आश्विन अमावस्या के दिन तर्पण किया जा सकता है। इसलिये इस अमावस्या को सर्वपितृ अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। ये श्राद्ध की अंतिम तिथि होती है।
इस वर्ष 2021 की पितर तिथियां
• पूर्णिमा श्राद्ध – 20 सितंबर
• प्रतिपदा श्राद्ध – 21 सितंबर
• द्वितीया श्राद्ध – 22 सितंबर
• तृतीया श्राद्ध – 23 सितंबर
• चतुर्थी श्राद्ध – 24 सितंबर
• पंचमी श्राद्ध – 25 सितंबर
• षष्ठी श्राद्ध – 27 सितंबर
• सप्तमी श्राद्ध – 28 सितंबर
• अष्टमी श्राद्ध- 29 सितंबर
• नवमी श्राद्ध – 30 सितंबर
• दशमी श्राद्ध – 1 अक्टूबर
• एकादशी श्राद्ध – 2 अक्टूबर
• द्वादशी श्राद्ध- 3 अक्टूबर
• त्रयोदशी श्राद्ध – 4 अक्टूबर
• चतुर्दशी श्राद्ध- 5 अक्टूबर
• अमावस्या श्राद्ध- 6 अक्टूबर
क्या बनाये पितर भोज में
मान्यता है कि श्राद्ध का भोजन बहुत ही साधारण और शुद्ध होना चाहिए वरना आपके पूर्वज उस खाने को ग्रहण नहीं करते और आपको श्राद्ध पूजा का पूरा लाभ नहीं मिल पाता।
श्राद्ध के भोजन में खीर पूरी अनिवार्य होती है। इसके अलावा जौ, मटर और सरसों का उपयोग श्रेष्ठ माना जाता है।पितरों को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के पकवान बनाएं जाते हैं लेकिन इनमें सबसे ज्यादा जरूरी गंगाजल, दूध, शहद, कुश और तिल को माना गया है।
– पूनम ऋतु सेन