
जो मनुष्य क्रोधी पर क्रोध नहीं, क्षमा करता है, वह अपनी और क्रोध करने वाले की महा संकट से रक्षा करता है। वह दोनों का रोग दूर करने वाला चिकित्सक है।
जिस मनुष्य की बुद्धि दुर्भावना से युक्त है तथा जिसने अपनी इंद्रियों को वश में नहीं रखा है, वह धर्म और अर्थ की बातों को सुनने की इच्छा होने पर भी उन्हें पूर्ण से समझ नहीं सकता।
मनुष्य जीवन की सफलता इसी में है कि वह उपकारी के उपकार को कभी न भूले। क्रोध, दुर्भावना को भूल कर सिर्फ प्रगति के लिए आगे बढ़ने की सोचना चाहिए यही वो मार्ग है तो हमे उचाईयो में पहुँचता है