रमजान का पवित्र महीना अपने खात्मे पर है. इस महीने का आखिरी जुमा अलविदा कहलाता है. अलविदा के दिन मुसलमान विशेष एहतेमाम करते हैं. मगर इस बार विशेष परिस्थिति के कारण अलविदा का वो दृश्य नहीं सामने आएगा जो अब तक पहले रहता था. बल्कि ये कहा जाए कि अलविदा जुमा बिल्कु सूना सूना होगा तो अतिश्योक्ति नहीं होगी.
इस बार लॉकडाउन के बीच रमजान का आखिरी जुमा यानी अलविदा पड़ रहा है. अलविदा का मतलब होता है रुखसत होना. यानी रमजान अब हमारे बीच रुखसत होने वाला है. अलविदा रमजान के आखिरी अशरे (21, 23, 25, 27, 29) में पड़ता है. रमजान के आखिरी जुमे को सैय्यदुल अय्याम कहा जाता है. ये सभी दिनों से अफजल होता है. जाहिर बात है जब ऐसा मौका मुसलमानों के बीच से रुखसत हो रहा हो तो उनका गमगीन होना लाजिमी है. इसलिए अलविदा के मौके पर मुसलामन नमाज में अल्लाह से अगला रमजान पाने की इच्छा जताते हैं.
फिलहाल लॉकडाउन के कारण मस्जिदों में सामूहिक इबादत की मनाही है. राज्य सरकारों की तरफ से अब तक मस्जिदों में नमाज अदा करने की इजाजत नहीं मिली है. लिहाजा उसका असर अलविदा पर भी पड़ने वाला है. लोग घरों पर ही रहकर अलविदा मनाएंगे.चूंकि जुमा और ईद-उल-फित्र की नमाज सामान्य नमाजों से अलग होती है. इसके लिए खुतबा जरूरी होता है. ईद-उल-फित्र में खुतबा नमाज अदा करने के बाद पढ़ा जाता है जबकि जुमा में नमाज से पहले. मगर लॉकडाउन में अलविदा की नमाज घर पर जोहर की नमाज की तरह पढ़नी होगी. अलविदा के बाद लोग ईद की तैयारियों में तेजी से जुट जाते हैं. अपने परिजनों के लिए कपड़े की कवायद में लग जाते हैं. जिसको पहनकर ईद की नमाज अदा की जा सके.
ऐसा नहीं है कि घर पर जुमे की नमाज नहीं पढ़ी जा सकती है, लेकिन दिक्कत ये है कि जुमे की नमाज के लिए जो शर्तें हैं उसे घर पर पूरा करना जरा मुश्किल है. भारत में सुन्नी मुसलमानों में हनफी मस्लक के मानने वाले ज्यादा हैं और उनके यहां जुमे की नमाज के लिए कम से कम चार लोगों की शर्त है. दूसरी बड़ी शर्त ये है कि खुली जगह होनी चाहिए यानि बंद घर में जुमे की नमाज नहीं हो सकती है. तीसरी बात ये है कि जुमे की नमाज में खुतबा दिया जाता है, खुतबा हर मुसलमानों को याद नहीं होता या वो नहीं दे पाते ऐसे में जुमे की नमाज घर पर पढ़ने में परेशानी होती है, लेकिन अगर कोई भी इन मुख्य तीन शर्तों को पूरा करता है तो अपने घर पर जुमे की नामाज पढ़ सकता है.
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