बिहार से सुलगी जाति आधारित गणना के आग की आच अब उत्तर प्रदेश भी पहुच गई है। केंद्रीय मंत्री और अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल के भी समर्थन के बाद बहुजन समाज पार्टी के प्रमुख मायावती भी जाति आधारित गणना का राग अलापने लगी हैं। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव पहले से ही इसके समर्थन मे हैं। वही भारतीय जनता पार्टी इससे दूरी बनाए हुए नजर आ रही है., क्योकि पिछले चुनाव मे उसको ओबीसी के यादवों जैसे बड़े तबके के बजाय उन जातियों का वोट ज्यादा मिला, जिनकी संख्या तुलनात्मक रूप से कम है, लेकिन ये छोटे-छोटे समूह मिलकर एक बड़ी आबादी बन जाते हैं।
बिहार सरकार ने जाति आधारित गणना के आंकड़े जारी कर दिए हैं। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में भी जातिगत सर्वे की मांग तेज हो गई है। वहीं, कर्नाटक में 2015 में हुई जातिगत गणना को सार्वजनिक करने की मांग उठने लगी है। इसी मुद्दे पर अब उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल मची हुई। इसको लेकर केंद्रीय मंत्री और अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल का भी रिएक्शन सामने आया है। पटेल ने कहा, “अपना दल ने हमेशा जातीय जनगणना की वकालत की है और संसद में हमने अपनी पार्टी का स्पष्ट रूप से पक्ष रखा है कि हम जातीय जनगणना के पक्षधर हैं और ये समय की मांग है.” साथ ही आप सांसद संजय सिंह ने भी जातिगत गणना का समर्थन किया है।
जातीय आधारित गणना पर मायावती ने कहा कि यूपी सरकार को अपनी नीति और नीयत में जनभावना का ध्यान रखते हुए सर्वे शुरू कर देना चाहिए। असल में केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर गणना कराकर ही वाजिब अधिकार सुनिश्चित किया जा सकता है। वही, समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने कहा कि बिहार जाति आधारित गणना प्रकाशित, ये है सामाजिक न्याय का गणतीय आधार जातीय आधारित गणना, 85-15 के संघर्ष का नहीं बल्कि सहयोग का नया रास्ता खोलेगी। उन्होंने कहा, जो सच में अधिकार दिलवाना चाहते हैं वो जातिगत गणना करवाते हैं। भाजपा सरकार राजनीति छोड़े और देशव्यापी जातिगत जनगणना करवाए।
देश में जातिगत गणना की चर्चा तेज है और विपक्षी दल इसके समर्थन में सामने आ रहे हैं तो बीजेपी इससे दूरी बनाए हुए नजर आ रही है। बीजेपी का इससे दूरी बनाने की एक वजह यह हो सकती है कि विभिन्न जातियों मुख्य रूप से ओबीसी जाति का जो आंकड़ा सामने आएगा, उससे सरकारी नौकरी और संस्थानों में एडमिशन के लिए ओबीसी कोटे का मुद्दा शुरू हो सकता है और क्षेत्रीय दल इसके लिए सत्ताधारी बीजेपी पर दबाव बनाएंगे। इससे देश में फिर से वही स्थिति पैदा हो सकती है, जो मंडल कमीशन की रिपोर्ट के बाद हुई थी और क्षेत्रीय दल जो फिलहाल उतनी मजबूत हालत में नहीं हैं उनकी स्थिति मजबूत हो जाएगी। 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की जीत पर नजर डालें तो ब्राह्मण, आदिवासी और दलितों के साथ उसका ओबीसी वोटबैंक बढ़ा है। बीजेपी को ओबीसी के यादवों जैसे बड़े तबके के बजाय उन जातियों का वोट ज्यादा मिला, जिनकी संख्या तुलनात्मक रूप से कम है, लेकिन ये छोटे-छोटे समूह मिलकर एक बड़ी आबादी बन जाते हैं।