प्रदेश की राजनीति में ओबीसी वोटरों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। विधानसभा चुनाव में दोनों ही प्रमुख दल कांग्रेस और भाजपा ने ओबीसी को साधने पर पूरा जोर लगा रखा है। प्रदेश में इस वर्ग से साहू, कुर्मी, यादव, कलार, मरार व अन्य समाज के लोग शामिल हैं। प्रदेश की 90 विधानसभा सीटों में सामान्य वर्ग के लिए 51, एससी के लिए 10 और एसटी के लिए 29 सीटें आरक्षित हैं। हालांकि ओबीसी को प्रदेश में 27 प्रतिशत आरक्षण देने और जातिगत जनगणना को लेकर देशभर में माहौल बना रही कांग्रेस ओबीसी प्रत्याशी उतारने के मामले में भाजपा के मुकाबले पीछे रह गई।
2018 के चुनाव में आदिवासियों ने कांग्रेस पर भरोसा जताया था और 29 सीटों में 27 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। इस लिहाज से फिर कांग्रेस 2018 के परिणाम को रिपीट करने के लिए आदिवासियों पर दांव लगा रही है। कांग्रेस ने ओबीसी से ज्यादा आदिवासी नेताओं को तवज्जो दिया है। कांग्रेस ने ओबीसी से 26, एससी से 10, एसटी से 32 और 2 अल्पसंख्यक नेताओं को प्रत्याशी बनाया है। बीजेपी ने चौथी सूची जारी कर सभी 90 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। इसके साथ ही बीजेपी ने 2023 के विधानसभा चुनाव के मैदान में सबसे ज्यादा ओबीसी वर्ग को उतारा है। बीजेपी ने ओबीसी वर्ग के 33 उम्मीदवारों को मैदान उतारा है। साथ ही अनुसूचित जनजाति वर्ग के 30 और 10 एससी वर्ग उम्मीदवारों को खड़ा किया है।
चुनावी राजनीति भले ही मुददों से शुरू होती है, लेकिन उम्मीदवारों के चयन से लेकर टिकट वितरण तक जातिय समीकरण को ही महत्व दिया जाता है। प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी ने भी अपनी-अपनी जातिय गोटियां फीट कर दी हैं। अब जातियों की बारी है कि वे किसको अपना आशीर्वाद देते हैं। किस पार्टी के जातिय उम्मीदवार को उनकी जाति के लोग अपना नेता स्वीकार करते हैं तो चुनाव परिणाम ही बताएगा।