- डिडिनेश्वरी देवी मन्दिर, मल्हार
Ekhabri धर्मदर्शन,पूनम ऋतु सेन। जिला मुख्यालय से लगभग 40 कि.मी. दूर जोधरा मार्ग पर मल्हार के बाहर पूर्व दिशा में लगभग 1 km में डिड़िनेश्वरी देवी का मन्दिर स्थापित है।अंचल के लोगों की मान्यताओं के अनुसार यह मंदिर 52 शक्तिपीठों में 51वां शक्तीपीठ है। यहाँ के लोग इसे डिड़िन दाई के नाम से भी जानते हैं।
यह मन्दिर कलचुरी कालीन शिल्पकला का विशिष्ट उदाहरण हैं। 11वीं शताब्दी में निर्मित इस मन्दिर के गर्भगृह में काले ग्रेनाईट से बनी देवी प्रतिमा स्थापित है। यह प्रतिमा 4 फ़ीट ऊँची है। शोधकर्ताओं के अनुसार इसे मूर्ति कला का उत्तम नमूना बताया गया है।
डिडनेश्वरी देवी
डिड़वा यानि अविवाहित वयस्क पुरुष और डिड़िन अर्थात् कुंवारी लड़की। माना जाता है कि मल्हार के शैव क्षेत्र में डिडिनेश्वरी माता, आदिशक्ति अथवा पार्वती का रूप है, जब वे गौरी थीं, तब वे शिव-वर पाने को आराधनारत थीं। कुआंरी रूप में शैल सुता पार्वती शिव को पति के रूप में पाने के उद्देश्य से तपस्यारत हुई, इसलिए ग्रामीण जन इन्हें डिड़िनदाई कहते हैं। ऐसी धारणा है, कि डिड़िनदाई के समक्ष अनुष्ठान कर पुत्र की कामना की जाये, तो वह अवश्य पूरी होती है। इस मन्दिर में स्त्रियाँ बिना सिर ढँके प्रवेश नहीं करती हैं तथा देवी की प्रतिमा पर सिन्दूर लगाती हैं हालाँकि विद्वानों के अनुसार हाथ बांधे पद्मासन की मुद्रा में बैठी यह प्रतिमा, देवी पार्वती के कुंआरे छवि को दर्शाती है, क्योंकि सिन्दूर तथा सिर पर आंचल जैसे प्रतीकों का इस्तेमाल इस छवि में नहीं किया गया है।
मूर्ति व मंदिर का इतिहास व पौराणिक कथा
मान्यता है कि यह कलचुरियों की कुलदेवी है, देवार गीतों में इसे राजा वेणू की इष्ट देवी भी बताया गया है। डिड़नेश्वरी की प्रतिमा को कलचुरी काल के ग्याहरवी सदी की सर्वश्रेष्ठ कलाकृति माना गया है। 4 फ़ुट ऊंची यह प्रतिमा आभामंडल के साथ छत्र को महीनता से लघु घंटिकाओं द्वारा अलंकृत किया गया है। प्रतिमा के फ़लक पर नौ देवियाँ उत्कीर्ण हैं, कहते हैं जब देव गण युद्ध में असुरों से हार गए तो वे पार्वती की शरण में आए। पार्वती ने पद्मासन में बैठ कर ध्यान किया जिससे नौ देवियों ने प्रकट होकर असुरों का संहार किया।
मंदिर संरचना व परिसर
मन्दिर की मूल संरचना नष्ट हो चुकी थी लेकिन मूल नींव पर ही निषाद समाज द्वारा नया निर्माण कराकर उसका पुनः उद्धार 2 वर्ष पहले ही 2019 में कराया गया है। इसमें प्रयुक्त ग्रेनाइट के पत्थर ध्वन्यात्मक प्रकृति के हैं। यदि किसी धातु के वस्तु से उस पर चोट की जाए, तो उसी धातु की ध्वनि उत्पन्न होती हैं। मंदिर प्रांगण के दांए तरफ़ एक बड़ा तालाब है तथा मंदिर के सामने भी एक पक्का तालाब है जिसमें ग्रामीण निस्तारी करते हैं।
मल्हार के आसपास पूरा क्षेत्र प्राकृतिक व पुरातत्व धरोहरों से भरपूर है। मल्हार के केवट मोहल्ले में जैन तीर्थकर सुपावनाथ के संग नौ तीर्थकर मूर्ति स्थापित है। गांव वाले उसे नंदमहल कहते हैं। मंदिर, पत्थर, मूर्तियों के अलावा यहां पर पुरातत्व संपदाएं बिखरीं पड़ी हुईं हैं।
एक बार हो चुकी है मूर्ति की चोरी
डिड़िन दाई का मंदिर पूरे मल्हार और आसपास के जन-जन की आस्था का केन्द्र है।” डिड़नेश्वरी देवी प्रतिमा को कई बार चोरी करने का प्रयास किया पर चोर एक बार कामयाब हो गए। इस दौरान अखबारों में इस प्रतिमा चोरी के समाचार छपने से यह प्रतिमा विश्व प्रसिद्ध हो गई फ़िर अचानक यह प्रतिमा बरामद भी हो गई।
भक्ति व आस्था का केन्द्र
मान्यता है कि देवी के दर्शन मात्र से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। माता अपने दरबार से किसी को भी खाली हाथ नहीं जाने देती। नवरात्रि के दिनों में लोग माता डिडनेश्वरी के रंग में रंग जाते है। गांव में भक्ति का माहौल रहता है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। मंदिर में भी विशेष पूजा-अर्चना व धार्मिक आयोजन होते हैं।
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