मदकू द्वीप मुंगेली जिले में हिंदुओं और ईसाइयों का पवित्र स्थल है।इसी स्थल से 10वीं से 11वीं शताब्दी के कलचुरी कालीन 23 प्रस्तर मंदिरों के अवशेष और उनसे संबंधित मूर्तियाँ प्राप्त हुयी हैं। इन्हीं अवशेषों में चतुर्भजी नृत्य करते गणेश प्रतिमा मिली है।
कैसे पहुँचे मदकू द्वीप?
रायपुर – बिलासपुर राजमार्ग पर 76 कि.मी. या बिलासपुर–रायपुर मार्ग पर 37 कि.मी. पर बैतलपुर स्थित है । बैतलपुर से लगभग 4 कि.मी. दूर शिवनाथ नदी के तट पर स्थित द्वीप पर एनीकट से जाया जा सकता है । इसके अलावा निपानिया से 9 किलोमीटर दूर या भाटापारा से 14 किलोमीटर दूर कड़ार-परसवानी मार्ग से इस द्वीप पर सड़क से जा सकते
मदकू द्वीप की विशेषता
चारों ओर शिवनाथ नदी से घिरा मदकू द्वीप प्रसिद्ध पुरातात्विक स्थल है, इसे मदकू,मडकू या मनकू द्वीप के नाम से भी जाना जाता है।शिवनाथ की दो धारायें द्वीप को दो भागों में विभक्त करती हुई ईशान कोण में बहती है जिसे हिन्दू वास्तुशात्र में पवित्र माना गया है।
कवर्धा के भोरमदेव मन्दिर में भी है नृत्य करते गणेश जी
छत्तीसगढ़ के उत्तर-पश्चिमी भाग में कवर्धा जिला जो की सीमांत जिला, मध्य प्रदेश से लगा हुआ। यह क्षेत्र जंगल से घिरा, झीलों के साथ एक पहाड़ी पर ऐतिहासिक शिव मंदिरों का घर है जिसमें शैव के साथ वैष्णव, शक्ति परंपरा की शैली को खूबसूरती मन्दिर है। यहां के सबसे पुराने मंदिर 7वीं शताब्दी के आसपास ईंटों से बनाए गए थे। लम्बे समय से प्रकृति की मार झेल अब खंडहर हो गए थे बाद में मंदिरों को लाल बलुआ पत्थर से बनाया गया। दोनों शैलियाँ भोरमदेव समूह के मंदिरों में पाई जाती हैं – चार एक दूसरे के करीब, दो मुख्य भोरमदेव मंदिर से लगभग एक किलोमीटर दूर।
इन मंदिरों में एक स्थान पर नाचती हुई गणेशजी की प्रतिमा है। जो 11वी शताब्दी की नागर शैली की है।
चतुर्भुजी गणेश जी की प्रतिमा
यह प्रतिमा लगभग 65-70 वर्ष पूर्व स्थानीय लोगों को द्वीप क्षेत्र में प्राप्त हुई थी इसके बाद इस प्रतिमा को मंदिर में रखकर पूजा जाने लगा है। नृत्य की मुद्रा में दक्षिणावर्त चतुर्भजी गणेश जी की विलक्षण प्रतिमा इस क्षेत्र की शैव धर्म सत्ता की पुष्टि करता है। गणेश जी की यह मूर्ति 10वीं से 11वीं सदी के स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना है।
नृत्य करते गणपति जी के पूजन का महत्व
आप सभी ने विभिन्न प्रकार के छवि वाले गणेश जी की पूजा करते हुए देखा और सुना होगा ये सभी मूर्तियों का अपना अलग महत्व है।
चतुर्भुजी गणेश जी की प्रतिमा
यह प्रतिमा लगभग 65-70 वर्ष पूर्व स्थानीय लोगों को द्वीप क्षेत्र में प्राप्त हुई थी इसके बाद इस प्रतिमा को मंदिर में रखकर पूजा जाने लगा है। नृत्य की मुद्रा में दक्षिणावर्त चतुर्भजी गणेश जी की विलक्षण प्रतिमा इस क्षेत्र की शैव धर्म सत्ता की पुष्टि करता है। गणेश जी की यह मूर्ति 10वीं से 11वीं सदी के स्थापत्य कला का बेहतरीन नमूना है।
नृत्य करते गणपति जी के पूजन का महत्व
आप सभी ने विभिन्न प्रकार के छवि वाले गणेश जी की पूजा करते हुए देखा और सुना होगा ये सभी मूर्तियों का अपना अलग महत्व है।
नृत्य करते हुए गणपति जी का पूजन विशेष रूप से कला जगत से जुड़े व्यक्तियों को करना चाहिए। इनका यह स्वरूप धन और आनंद देने वाला स्वरुप है। इस रूप की पूजा करने से कला की दिशा में सफलता प्राप्त होती है। साथ ही इनका पूजन नकारात्मक ऊर्जा को रोकने में सहायक है।
भारत में नृत्य करते गणेश जी के मंदिर
नृत्य करते गणपति जी को मुख्यतः उत्तर भारत में अधिक पूजा जाता है। इनमें से राजस्थान अलवर के नृत्य मुद्रा वाले गणेश जी प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त गुजरात,उत्तर प्रदेश के शिव मंदिरों में भी इसी छवि के गणेश जी पूजे जा रहे हैं।